शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

सवालों के घेरे में इन्सानियत

क्या कहें अब मूक ज़ुबानें 
सुलगती चिंगारियाँ और फुंके घर-बार दुकानें 
कुर्बान हो गईं कितनी ज़िन्दगियाँ 
नफरत की जलती मिसालें 

अब नहीं बनना है कहानियाँ हमको 
नहीं झेलने हैं और बँटवारे के दर्द 
सदियों को झेलना पड़ता है 
ढोतीं हैं पीढ़ियाँ बोझा 
खोल के देख ले तू ज़हन की किताबें 

पहले आप , पहले आप वाले देश में 
मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई 
अपनों में कौन बेगाना है 
कोई तो पूछ बताये हमें 
सवालों के घेरे में इन्सानियत 
सोये ज़मीर को जगाओ तो जानें