और चाची चलीं गईं । जाना तो जन्म के साथ ही तय हो जाता है , पर मौत की दस्तक हमने उस दिन ही सुन ली थी , जिस दिन उनके दोनों गुर्दे फेल होने की ख़बर मिली थी । २९नव .०८ उधर ताज में कमांडोज ने उग्रवादियों का सफाया किया ,कितने ही देशभक्त शहीद हुए , इधर ७.३०बजे मेरी चाची जी ने आखिरी साँस ली ।
उनकी मौत आशा के विपरीत नहीं थी , उन्हें तो हम उन्हीं दिनों बहुत रो चुके थे , जब रोग का पता चल गया था , बचपन से जुड़ी उनकी यादें बहुत रुला चुकी थीं । अब तो ठगे से , असहाय से , यंत्र वत उनका जाना देखते रहे ; जीवन का शाश्वत सत्य जैसे हमें जड़ कर गया हो । उग्रवादियों की वजह से जो लोग शहीद हुए , वो सारी असामयिक मौतें थीं , असामयिक मौत को सहना आसान होता ही नहीं , मन झगड़ता है ,रोता है , अचानक जीने के सहारे , जीने की गति छिन जाती है । तड़फते मन को किसी आशा की किरण की जरुरत होती है । चाचा जी की असामयिक मौत ,और चाची जी कर्म का दामन थामें रहीं ; जैसे यही जीवनी शक्ति हो । उनकी बहू ने उनकी आवाज में गाया हुआ गीत टेप करके रखा हुआ था , सुनवाया ' नी मैं तडफाँ वांग शुदाइयां , वे आ मिल कमली देया साईयाँ ' , जिसका अर्थ है , अरी , मैं बौराए हुओं के जैसे तड़फ रही हूँ , तू आ के मिल , पगली के सजन ; आवाज़ तो कैद कर ली गई , मगर जीवन को कौन क़ैद कर सका है ।और काल उन्हें अपने साथ ले गया ।
२५ जन.०८ को उनके रोग का पता लगने पर ये कविता रोते हुए मन ने लिखी थी ...
'जीवन का ये संध्या वंदन सिखाओ '
वही हँसते गाते चेहरे
यादों को सजाते चेहरे
पड़ गईं झुर्रियां
संध्या की तरफ़ जाते चेहरे
कभी झरतीं थीं , आशा की किरणें
जीती जागती ,परियों की सी उमंगें
वो संध्यावन्दन , किससे पूछें , वो तुम क्या गाते थे
शाम होते ही , कैसे मुस्कराते थे
मेरी यादों की किताब में
जोड़े जाते हो दर्द के किस्से
मेरी ऊँगली पकड़ लेते चेहरे
क्या यही हश्र है
मुस्कराहटें , उमंगें , तरंगें ,
बदली हैं दुःख की परछाईयों में
किससे पूछें कैसे जीते हो तन्हाईयों में
पीते हो दर्द के घूँट , संग-संग दुःख के निवाले
कोई खींचें लिए जाता है दूसरी ही अमराईयों में
जीवन का ये संध्या वंदन सिखाओ ,
डूबे जाते हो किन गहराईयों में
सब कुछ तो छूटा ,
वो यौवन , इच्छाएं , सुख की वो क्षणिकाएं
ये तो बताओ कैसे चलते हैं , तिनके-तिनके सी पगडंडियों पे
उनकी मौत आशा के विपरीत नहीं थी , उन्हें तो हम उन्हीं दिनों बहुत रो चुके थे , जब रोग का पता चल गया था , बचपन से जुड़ी उनकी यादें बहुत रुला चुकी थीं । अब तो ठगे से , असहाय से , यंत्र वत उनका जाना देखते रहे ; जीवन का शाश्वत सत्य जैसे हमें जड़ कर गया हो । उग्रवादियों की वजह से जो लोग शहीद हुए , वो सारी असामयिक मौतें थीं , असामयिक मौत को सहना आसान होता ही नहीं , मन झगड़ता है ,रोता है , अचानक जीने के सहारे , जीने की गति छिन जाती है । तड़फते मन को किसी आशा की किरण की जरुरत होती है । चाचा जी की असामयिक मौत ,और चाची जी कर्म का दामन थामें रहीं ; जैसे यही जीवनी शक्ति हो । उनकी बहू ने उनकी आवाज में गाया हुआ गीत टेप करके रखा हुआ था , सुनवाया ' नी मैं तडफाँ वांग शुदाइयां , वे आ मिल कमली देया साईयाँ ' , जिसका अर्थ है , अरी , मैं बौराए हुओं के जैसे तड़फ रही हूँ , तू आ के मिल , पगली के सजन ; आवाज़ तो कैद कर ली गई , मगर जीवन को कौन क़ैद कर सका है ।और काल उन्हें अपने साथ ले गया ।
२५ जन.०८ को उनके रोग का पता लगने पर ये कविता रोते हुए मन ने लिखी थी ...
'जीवन का ये संध्या वंदन सिखाओ '
वही हँसते गाते चेहरे
यादों को सजाते चेहरे
पड़ गईं झुर्रियां
संध्या की तरफ़ जाते चेहरे
कभी झरतीं थीं , आशा की किरणें
जीती जागती ,परियों की सी उमंगें
वो संध्यावन्दन , किससे पूछें , वो तुम क्या गाते थे
शाम होते ही , कैसे मुस्कराते थे
मेरी यादों की किताब में
जोड़े जाते हो दर्द के किस्से
मेरी ऊँगली पकड़ लेते चेहरे
क्या यही हश्र है
मुस्कराहटें , उमंगें , तरंगें ,
बदली हैं दुःख की परछाईयों में
किससे पूछें कैसे जीते हो तन्हाईयों में
पीते हो दर्द के घूँट , संग-संग दुःख के निवाले
कोई खींचें लिए जाता है दूसरी ही अमराईयों में
जीवन का ये संध्या वंदन सिखाओ ,
डूबे जाते हो किन गहराईयों में
सब कुछ तो छूटा ,
वो यौवन , इच्छाएं , सुख की वो क्षणिकाएं
ये तो बताओ कैसे चलते हैं , तिनके-तिनके सी पगडंडियों पे
jaane waale to chale jaate hain magar unki yaaden unki baaten reh jaati hain .inhe yaad karke aapne is shasvat satya ko kalam di hai iske liye saadhuvaad .jhallevichar.blogspot.com par aapkaa swagat hai
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