सोमवार, 19 सितंबर 2016

बृंदा हो

अपनी प्यारी सी सखी के लिये  ....... 

तारों में ज्यों चन्दा हो 
नाम सार्थक करतीं अपना 
अँगने में ज्यों बृंदा हो 

पावन मन है ऐसा तुम्हारा 
पीड़ पराई समझो जैसे 
अपने गले का फन्दा हो 

आसाँ नहीं ये राह पकड़ना 
छोड़ आई हो घर को ऐसे 
जैसे कोई परिन्दा हो 

सींच रही हो जड़ों को अपनी 
फूले-फले ये बगिया तुम्हारी 
रौशनी का तुम पुलिन्दा हो