शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

सवालों के घेरे में इन्सानियत

क्या कहें अब मूक ज़ुबानें 
सुलगती चिंगारियाँ और फुंके घर-बार दुकानें 
कुर्बान हो गईं कितनी ज़िन्दगियाँ 
नफरत की जलती मिसालें 

अब नहीं बनना है कहानियाँ हमको 
नहीं झेलने हैं और बँटवारे के दर्द 
सदियों को झेलना पड़ता है 
ढोतीं हैं पीढ़ियाँ बोझा 
खोल के देख ले तू ज़हन की किताबें 

पहले आप , पहले आप वाले देश में 
मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई 
अपनों में कौन बेगाना है 
कोई तो पूछ बताये हमें 
सवालों के घेरे में इन्सानियत 
सोये ज़मीर को जगाओ तो जानें 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )

    12 मार्च २०२० को साप्ताहिक अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/


    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'





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  2. पहले आप , पहले आप वाले देश में
    मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई
    अपनों में कौन बेगाना है
    कोई तो पूछ बताये हमें
    सवालों के घेरे में इन्सानियत
    सोये ज़मीर को जगाओ तो जानें
    आज देख को इसी की जरूरत है | सद्भावना भरी रचना | आभार और बधाई |

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  3. पहले आप , पहले आप वाले देश में
    मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

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