शनिवार, 3 अप्रैल 2021

तुम्हारे आने की जबसे हलचल उट्ठी


 तेरे आने की जबसे हलचल उठ्ठी 
आम के बौर हैं चौंधियाए हुए 
नीबू शरीफे के फूल हैं मुस्काये जाते 
और सारी बेलें हैं कानाफूसियाँ करतीं 
सिन्दूरी आमों की डलिया भी इतरा है रही 
मेरे दिन-रात हैं सिन्दूरी से जगमगाये हुए 
कितने चन्दा हैं आसमान में उग आये हुए 

मेरी बिटिया , बेशक मेरे हाथों में अब दम कम है 
तुम्हीं बरामदे में मुझे ला बिठाओगी 
और दिखाओगी लौकी करेले की बेलें 
मैनें ओढ़ ली तारों की चूनर 
तुम्हारे आने की खबर जबसे ज़हन में महकी 
तुम्हारा चेहरा , तुम्हारा सानिध्य जाने क्या-क्या मेरे आस-पास तुम्हारे आने से पहले ही आ महका 

तुम्हारी चाहत के हजारों दिए हो उठ्ठे रौशन 
करोड़ों सूरज भी शरमाते हैं 
घर के दरो-दीवार , छोटी सी बगिया ,ऐसे महकी , फिजाँ ही फिजाँ ले आये हो 
और सबसे बढ़ कर मेरा मन डाल की सबसे ऊँची फुनगी पर झूलता हुआ जा बैठा 
और सब सिन्दूरी-सिन्दूरी हो उट्ठा 
तुम्हारे आने की जबसे हलचल उट्ठी