शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

हमने अच्छे -अच्छों को ,खरबूजे की तरह
रंग बदलते देखा
बड़े -बड़ों को गुमनामी में ,
तड़पते देखा
शोहरत मिलती है नसीबों से
नसीबों को बदलते देखा
चढ़ते हुए जंगी से
हौसलों को मचलते देखा
गुरूर की नासमझी में
भाई-भाई को झगड़ते देखा
कामना की अंधी दौड़ में
रिश्तों को उधड़ते देखा
लताड़े जाते हैं दिलों को
रंग कुर्सी का यूँ चढ़ते देखा
उजाले में ,दामन पर पड़े
छींटों से बचते देखा
जाल अपने ही बुने में
बड़े -बड़ों को फंसते देखा
हस्ती है बड़ी ,रंग
क़द का ही बिखरते देखा
इंसानियत छोटी क्यों हुई
टूटे दिलों को बिलखते देखा

सोमवार, 20 अक्तूबर 2008

झूठ के क़दमों

झूठ के क़दमों चला नहीं जाता

झूठ के पंख लगे होते हैं

झूठ आँख मिला कर बात नहीं करता

वक़्त की कैंची से सब्र नहीं होता

सुंघा देती है जमीन ,पंख कतरे होते हैं

झूठ के पेड़ पर फल नहीं होता

डाल,पत्ते ही बीज ,जड़ खा जाते हैं

सच को रहम नहीं होता

झूठ उगता है बीमार लताओं की तरह

उन पर मौसम का कोई करम नहीं होता

सच की धरती पर ही फूल उगा करते हैं

झूठ के दम पर सबेरा नहीं होता

कांटे धरती की नमी सोख लेते हैं

बिन नमी काँटों संग गुजारा नहीं होता
नेता लोगों में आश्चर्यजनक रूप से भावनात्मक जगत बाहरी जगत का तालमेल होता है ;जन्मजात संगठनात्मक शक्ति को अगर वे शुभ सृजन की दिशा दें ,तो वो कभी आक्रामक हो ही नहीं सकते

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

लिव इन रिलेशन शिप

'लिव इन रिलेशन शिप्स' को महाराष्ट्र सरकार ने स्वीकृति की मोहर लगा दी ,इससे एक ही फायदा हो सकता है कि साथ रहने पर साथी हमेशा के लिए गले पड़ सकता है इसलिए लोग रिश्ता सोच समझ कर बनायेंगे। पर अपरिपक्व उम्र से परिपक्व सोच की उम्मीद कैसे की जा सकती है !
दूर की चीज चुम्बक की तरह आकर्षित करती है ;हासिल होने के बाद अति मीठा कडुवाहट के कगार पर खड़ा हो जाता है । शादी के बंधन में करवा-चौथ जैसे तीज त्यौहार नमकीन होते रिश्तों को मिठास में बदलने में सक्षम हैं। पति जानता है कि पत्नी ने उसके लिए ही व्रत रखा है ,उसी की लंम्बी आयु की कामना की है उसी के लिए सजी संवरी है । दूसरी तरफ़ मर्जी से साथ रह रहे जोडों के लिए करवा-चौथ क्या मायने रखता है !

रिश्तों की नींव पर ही समाज खड़ा है। कितनी ही बार मुश्किल वक़्त में ये पति पत्नी को घर की देहरी लाँघ लेने से रोक लेते हैं। जिसके दूरगामी परिणाम हमेशा शुभ ही होते हैं। परिवार में एक या दो बच्चे होने की वजह से नई पीडी चाचा,मौसी वाले रिश्तों से वंचित रहने वाली है; रही सही कसर ये 'लिव इन रिलेशन शिप' वाले जोड़े कर देंगे।

जिंदगी को पवित्र, सहज और व्यवस्थित भाव से जीना चाहिए, हर रिश्ता अहम् है और साफ़ सुथरा होना चाहिए तभी तनाव मुक्त रहा जा सकता है, वो सब झूठ है जो दुनिया से छिपाया जाता, झूठ है जिसपे नजरों को चुराया जाता, सच नहीं आयेगा गवाही देने, तेरा ईमान गवाही देगा, तेरा ईमान दुहाई देगा। मन को आदत होती है टेढे मेंढे रास्तों पर चलने की, अब ये हमारी मर्जी है की हम मन पर सवार हो जायें या अपनी हार मान लें ।

हमारा समाज इंटर कास्ट मैरेज को पहले ही स्वीकार कर चुका है। 'बिन फेरे हम तेरे' वाले जोड़े भी शादी के बंधन के लिए तरसते हैं;क्योंकि मर्यादा, पवित्रता और सुरक्षा की भावना इसमें ही निहित है।
साथी चुनिए मर्जी से ,परख कर ,मगर इस रिश्ते पर शादी की मोहर जरूर लगाइए
हद के अन्दर चाहत की कोई हद नहीं
हद के अन्दर जूनून की कोई हद नहीं
जब इस संबंध की परिणिति शादी जैसी ही है तो शुरुवाद शादी जैसी क्यों नहीं ? ये हम क्या खोने जा रहे हैं, कुछ ऐसा जो मन के कैमरे में क़ैद नहीं हो पायेगा। जीवन में वसंत तो आया पर आपने उठ कर स्वागत नहीं किया!

सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

ब्लॉगर साथियों के लिए

ये कलम वाले....
१. 
ऐ बुत तराश ,
जोशे-जुनूँ ,शबे-गम
मिलाया है किस हिसाब से
दामन तार तार कर लेते हैं ये
दूर कहीं गुलाब खिलने की चाह से
जोशे-जुनूँ एक सा,रंजो-गम एक सा
इसीलिये है रंजो-गम की जुबां एक सी

२.
इसे लग गयी है बू
कागज़ पे उतर आने की
घुट के जीना इसे अब रास नहीं आता
ये सनक अब संभाली न जायेगी
पानी को बाँध पाना नादानी है ,
किनारे तोड़ कर बह जाता है ये,
सैलाब की बस यही निशानी है


शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

उजाले को आने दो

खोलो झरोखों को,हवा आने दो
इन रास्तों से,उजाले को जगह दे दो
जियो कुछ इस तरह,उजाले का हिस्सा बन कर
इसको हवा में रच बस जाने दो
अँधेरा होता है भयानक
इसको वक़्त के साथ गुजर जाने दो
कालिमा को धो पुँछ जाने दो
उजाले की महक,उजाले की खनक
झन्कार को आने दो
महकेगा तन मन,
जीवन के नक्शे को बदल जाने दो
उजाले को आने दो

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

श्री श्री रवि शंकर जी के लिए

तुमने गाई एक धुन
कितनों के मन ने गाया

तुमने बढाया एक कदम
कितनों के संग चल पाए

तुमने पकड़ी एक उंगली
कितनों ने बाहें थमाईं

नूर है उसका उंगली पकड़े
चलने का सरमाया

तुमने खिलाई ये बगिया
फूलों को महकाया

तुम जो खड़े हो बाहें पसारे
कितनों को गले लगाया

आँखें मूंदू , सपना है क्या
सुख सागर लहराया

तुमने गाई एक धुन
कितनों के मन ने गाया

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

जियो और जीने दो

थोड़ी मिट्टी पौधों के साथ रहने दो
मुरझा जायेंगे ये ,जड़ों से उखड़ने के ख्याल से

मिट्टी -मिट्टी मत कर लेना ,
अपनी खुशबू फैलाने के धमाल से

कितनी ही तरह के फूल सजे
खुशबू न किसी की कम होती

गुलशन का लाड़ दुलार सदा
माँ का उपकार नहीं मिटता

न मिटता बचपन यादों से
आसमान से कैसे बांटेगा खुशियाँ

फूलों के दिल में रहना होगा
सबको मिट्टी में खिलने दो

जियो और जीने दो सबको
अपना जीना न बेहाल करो

दरख्तों से पूछो किस मजबूती से
कड़े हैं ये मिट्टी को

पर क्या फूलों का जीना दुशवार हुआ ?
मिट्टी ,पानी संग हवा जरूरी है

चारों ओर जो छा जाती ,खुशबू की मजबूरी है
फुहारें बन सबकी खुशबू लो

ख्वाब

ख्वाब जिनके हसीन होते हैं
जिंदगी के करीब होते हैं

उंगली पकड़ चलना सिखाते हैं अरमान
हकीकत की जमीन पर ही खड़े होते हैं

रेशमी धागों से जकड़ी बेड़ियों संग
ख्वाब ही के तो पंख लगे होते हैं

बिन ख्वाब के सूनी जिन्दगी
जैसे मरघट पे खड़े होते हैं

रोशनी से नहाये हुए थके कदम भी
पंख उगते ही ,उडे होते हैं

रोशनी है ख्वाब ही के दम पे
सुनहरी आखर की ताब होते हैं





शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

कवितायें

तीन

बादलों से ढका हो आसमान तो भी
उजाले की कोई किरण
धरती तक पहुँचती तो है
कृपण नहीं मेरा सूरज
उसकी कोशिश झलकती तो है
दूर ,तेरे होने का अहसास ही बहुत है
दूर ,तेरे चलने का आभास ही बहुत है
मैनें अभी किरणों को गिनना नहीं छोड़ा


चार

इश्क की आग से सबेरा कर लेना
ये सूरज सी आब रखता है
इसकी तपिश से है दुनिया का चलन
इस पर भरोसा कर लेना
ख्वाब सी है जमीन ,ख्वाब सा है आसमान
रेशमी से ख्वाब बुन लेना
चलना वैसे भी है,चाहत का मोड़ देकर
इक हंसीं मंजर देना

कवितायें

एक

हर लम्हा रात का आखिरी लम्हा होगा
सूरज दस्तक देगा मेरे दरवाजे पर
पहली किरण दस्तक देगी मेरे दरवाजे पर
मैनें अपनी ड्योढी पूरब की ओर बना रक्खी है
सारी किरणें अपनी चुनरी में भर लूंगी
बेशक मेरी चुनरी तार तार हो
चुनरी फ़िर चुनरी है
बूढी हो चली आंखों में सितारे भर लूंगी
हर लम्हा रात का आखिरी लम्हा होगा


दो

क्या हुआ ,जो इम्तिहान अभी और भी हैं
क्या हुआ ,जो राहें हैं पथरीली
सब्रो -पैमाना अभी नहीं छलका
कड़वे घूंटों को हलक से उतारना अभी नहीं खटका
तेरी राहों के मंजर देखने की हसरत अभी बाकी है
तेरी किताब के वरकों में ,कुछ नया देखने की ललक
अभी बाकी है