रविवार, 31 जनवरी 2010

थोड़ी चलने को जगह

लू को मैं समझ लेती हूँ ठँडी हवा
थोड़ी चलने को जगह हो जाये

शाम को मैं समझ लेती हूँ सुबह
इसी टुकड़े पर सुबह की खेती करके
थोड़ा आसमाँ मेरे नाम हो जाये


दीवारों से उलझूंगी तो चलूँगी कैसे
सिर पर खड़ा सूरज सम्भालूँगी कैसे
तपिश में थोडा आराम हो जाये

उड़ जाती हैं धज्जियाँ तब कहीं जाकर
ख़त्म होता है अहम , सच तो बोला है बहुत
थोड़ा झूठ से भी , काम हो जाये

सोमवार, 18 जनवरी 2010

मन का पखेरू तो

रुक कर जरा सोचें कि मन क्या तलाशता है ........

मन का पखेरू तो चुगता है सोना
ये इसकी ज़िदें हैं , ये इसकी हदें हैं
कितना भी समझाओ , समझे न बैन...

काया के पिन्जरे में आवाजें भली हों
कल हो न हो , ये दिन रैन .........
मन का पखेरू तो चुगता है सोना

जग को दिखावा , लगता भला है
मन तो ढूँढे , अपनी ज़मीं अपना चैन ...
मन का पखेरू तो चुगता है सोना

सुगना की रट है , समझा न कोई
सोने का दाना , हथेली पे रखता न कोई
अटका गले में , चबेना चबै न ......
मन का पखेरू तो चुगता है सोना


बुधवार, 6 जनवरी 2010

जीवन का पलड़ा भारी है

दुर्भाग्य से तो समझौता करें , ही दुर्भाग्य को निमंत्रण दें .......जिन्दगी हर हाल में चलती रहनी चाहिए .......क्योंकि जिन्दगी से ज्यादा खूबसूरत कोई चीज है ही नहीं ......करें तो जिन्दगी से समझौता करें | दूसरे के मन का सदा ख्याल रखें , कोई चुभती हुई बात जाने वो कितनी गहरी उठा लेगा |

हालातों से , संघर्षों से
तेरे मन के अंतर्द्वंदों से
जीवन का पलड़ा भारी है

भ्रमों से ,विषादों से
नीरवता के कोलाहल से
जीवन का पलड़ा भारी है

तेरे अहं से, तेरे दम्भ से
तेरी विष से भरी जुबानों से
जीवन का पलड़ा भारी है

तेरी जाति से , तेरे धर्म से
तेरे ऊँचे नीचे समाजों से
जीवन का पलड़ा भारी है

तेरे सुखों से , आरामों से
वैभव के साजो-सामानों से
जीवन का पलड़ा भारी है

तेरे अनुत्तरित सवालों से
कर्मों का पलड़ा भारी है
जीवन का पलड़ा भारी है

सोमवार, 4 जनवरी 2010

नया साल कुछ ऐसे आया

पिता जी का देहान्त और नये साल का आगाज़....

नया साल कुछ ऐसे आया
छूट गयी बरगद की छाया
कानों में ये फुसफुसाया
आशीर्वाद कहाँ जाता है खाली
आसमाँ से इक हाथ है आया
धीर-नीर में , वक्त-बेवक्त में
एक हौसला साथ ले आया
बीज वही है , फूल उगा लो
काँटों का सँग-साथ भी भाया
चल पायें हम उनके नक़्शे-कदम पर
ऊँगली पकड़ेंगे वो , हौसले ने सहलाया
माँ के पास , चले गए हैं
खुद को हमने यूँ बहलाया
नया साल कुछ ऐसे आया