रुक कर जरा सोचें कि मन क्या तलाशता है ........
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
ये इसकी ज़िदें हैं , ये इसकी हदें हैं
कितना भी समझाओ , समझे न बैन...
काया के पिन्जरे में आवाजें भली हों
कल हो न हो , ये दिन रैन .........
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
जग को दिखावा , लगता भला है
मन तो ढूँढे , अपनी ज़मीं अपना चैन ...
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
सुगना की रट है , समझा न कोई
सोने का दाना , हथेली पे रखता न कोई
अटका गले में , चबेना चबै न ......
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
ये इसकी ज़िदें हैं , ये इसकी हदें हैं
कितना भी समझाओ , समझे न बैन...
काया के पिन्जरे में आवाजें भली हों
कल हो न हो , ये दिन रैन .........
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
जग को दिखावा , लगता भला है
मन तो ढूँढे , अपनी ज़मीं अपना चैन ...
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
सुगना की रट है , समझा न कोई
सोने का दाना , हथेली पे रखता न कोई
अटका गले में , चबेना चबै न ......
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
मन का पखेरू तो चुगता है सोना
जवाब देंहटाएंये इसकी ज़िदें हैं, ये इसकी हदें हैं
कितना भी समझाओ, समझे न बैन..
सुंदर रचना के माध्यम से बहुत सही और सच कहा आपने.
जग को दिखावा , लगता भला है
जवाब देंहटाएंमन तो ढूँढे , अपनी ज़मीं अपना चैन ...
मन तो पागल है जग की रीत नही जानता ......... बहुत ही लाजवाब लिखा है .......
शानदार रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंजग को दिखावा , लगता भला है
जवाब देंहटाएंमन तो ढूँढे , अपनी ज़मीं अपना चैन ...
बहुत सुन्दर और सही है कितना भी कुछ अच्छा हो मगर म को और आगे तलाश रहती है । रचना दिल को छू गयी। बधाई
बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंजग को दिखावा , लगता भला है
जवाब देंहटाएंमन तो ढूँढे , अपनी ज़मीं अपना चैन ...
बहुत सुंदर रचना, भाव पुर्ण
धन्यवाद