गुरुवार, 26 मार्च 2015

पलकों पे है जो ठहरा

वाट्स एप पर ग्रुप बना कर कॉलेज के वक्त के साथियों से मिलाने का काम किया एक मित्र ने , चालीस साल का लम्बा अन्तराल ...अब चेहरों को पहचानने की कशम-कश जारी है ...

हम वैसे ही न मिलेंगे ,
जैसे जुदा हुये थे 

बरसों के फासले हैं ,
उम्र का भी है तकाज़ा 

जादू सा किसने फेरा ,
बदलीं हैं सारी शक्लें 

झाँकेगा वही चेहरा ,
पलकों पे है जो ठहरा 

वक़्त की है ये आँख-मिचोली ,
पलटे हैं पन्ने यादों ने 

दो कदम चले थे साथ ,
राहें बदल गईं थीं 

ख़्वाबों का कारवाँ भी ,
हमें ले के गया किधर 

बचपन की तरह छूटा ,
दौड़ा रगों में लेकिन 

छेड़ा है हवाओं ने ,
फिर से वही फ़साना 

किस चेहरे को किस से जोडूँ ,
यादों का मुँह मैं मोडूँ 

शनिवार, 21 मार्च 2015

नया साल है , नई बात हो

आओ हम इक दीप जलाएँ 
अँधियारे को दूर भगाएँ 

नया साल है , नई बात हो 
एक नई उम्मीद जगाएँ 

मन मैले को खूब बुहारें 
दम भर को फिर हम सुस्ताएँ 

खिली धूप हो हर चेहरे पर 
ऐसा कुछ हम भी कर जाएँ 

आज जो हमने बोया है ,कल काटेंगे 
दूर की कौड़ी हम भी ले आएँ 

कतार दियों की ऐसी हो रौशन 
मन  और प्राण से हम मुस्काएँ 

बुझ न जाये कहीं कोई दिल 
उसको भी हम गले लगाएँ 

खिड़-खिड़ हँसती रात दिवाली 
जीवन में हम ऐसी पाएँ 

दूर खड़ा मुस्काता सूरज 
कोई किरण तो हम भी चुराएँ 

दम कदमों में भर दे जो 
ऐसी कोई अलख जगाएँ 

गुम हैं हम तो खुद में देखो 
दायरा अपना कुछ तो बढ़ाएँ 

नाम किसी सफ़्हे पर आये 
ऐसा कुछ हम भी कर जाएँ 



मंगलवार, 3 मार्च 2015

मिट्टी में तेरा मान रे

अज्ञान ,अशिक्षा ,अविवेक ने , मन पे रक्खी न लगाम रे
अपने ही हाथों अपनी ही दुनिया का ,कर डाला काम तमाम रे

चरस ,गाँजा ,सिगरेट ,शराब , दाँव पे तेरी सेहत रे
तन-मन धन सब होगा अर्पण , गड्ढे में तेरी जान रे

चुग जायेगी चिड़िया तेरा ,सारा खेत ये जान रे
गुजरा वक़्त नहीं है आता , भर नहीं पाते निशान रे

ज़मीर सदा धिक्कारेगा तुझको ,अपने चुरायेंगे आँख रे
पीढ़ियाँ रोयेंगी नाम को तेरे ,मिट्टी में तेरा मान रे

होते हैं नियम कायदे-कानून , समाज नहीं है जँगल रे
पहुँच गया है आदमी चाँद पे ,उलझा है किसमें 
तू नादान रे 

रक्षक ही बन बैठा जब भक्षक ,विष्वास का है ये खून रे 
रिश्तों की खोद डाली जड़ें हैं ,ये तो बता ये जन्म तेरा ,आया है किस काम रे