रविवार, 15 नवंबर 2009

सबक अभी बाकी है

प्रेम ही रास्ता खोलता है , निर्मल आकाश का
वरना तंग गलियों में कहाँ गुजर बाकी है

छिल जाता है जिगर , घबरा के मुँह फेरता है जमीर
धड़कनें साँसों से कहती हैं , सफर अभी बाकी है


मोहरे बने हैं हम , खाता खुला है कर्मों के हिसाब का
जिन्दगी मुस्करा के कहती है , सबक अभी बाकी है


प्रेम की क्षीण किरण मुस्कराती है , हूँ तो लता सी
जान पे बनी है मगर , साँस लेने की ललक अभी बाकी है


सबक बाकी है , रात का कोई पहर अभी बाकी है
ललक बाकी है , आसमाँ की महक अभी बाकी है

रविवार, 8 नवंबर 2009

सुन्दर सा ज्यों मुखड़ा कोई गुलाब का



नौ नवम्बर ०९ , आज बेटे का बीसवाँ जन्मदिन है , छोटा सा था जब माउन्ट आबू में बेटियों की राजस्थानी ड्रेस में फोटो खिचवाई थी , तो इन्हें भी कहा कि राजस्थान की पारम्परिक ड्रेस में एक फोटो खिंचवा लो ; सिर हिला कर कहने लगे कि नहीं ये नहीं पहनूंगा ,  फ़िर ख़ुद ही कहने लगे कि यहाँ पुलिस वाली ड्रेस भी है उसको पहनूँगा  ,ये फोटोग्राफ उस वक़्त का ही है।

ये कविता अमरउजाला के बच्चों वाले कॉलम के लिए लिखी थी , पर याद तो अपने ही बेटे को कर रही थी।   प्रस्तुत है .....

तू फूल है मेरे बाग़ का
सुन्दर सा ज्यों मुखड़ा कोई गुलाब का


पढ़ लिख के बन जाना
तू कोई नवाब सा


बन जाना तू प्रेम और
भाईचारे की मिसाल सा


मुश्किलों से न घबराना
सिपाही है तू जाँबाज सा


रास्ता तेरा महफूज हो
ममता की ठण्डी छाँव सा


तू मुस्कराता है , घर
खिल जाता है किसी बाग़ सा


महकाना तू दुनिया को
स्वर्ग सा , इक ख्वाब सा


बहारों को न्योता दे दिया
गुलशन को है इन्तजार सा


तू फूल है मेरे बाग़ का
सुन्दर सा ज्यों मुखड़ा कोई गुलाब का

बुधवार, 4 नवंबर 2009

सोने दे मुझे शब भर को

सोने दे मुझे शब भर को
कितनी है कीमत अपनों की
आराम की कीमत कितनी है
आँसू न कर पाये कीमत
उधड़ा है जिगर
सिलाई की कीमत कितनी है
सब्र कितने वक्त का , ये बता
ये सफर है या मुकाम
आड़े वक्त के साथी ,
क्या यही है मेरा ईनाम
सोने दे मुझे शब भर को