वरना तंग गलियों में कहाँ गुजर बाकी है
छिल जाता है जिगर , घबरा के मुँह फेरता है जमीर
धड़कनें साँसों से कहती हैं , सफर अभी बाकी है
मोहरे बने हैं हम , खाता खुला है कर्मों के हिसाब का
जिन्दगी मुस्करा के कहती है , सबक अभी बाकी है
प्रेम की क्षीण किरण मुस्कराती है , हूँ तो लता सी
जान पे बनी है मगर , साँस लेने की ललक अभी बाकी है
सबक बाकी है , रात का कोई पहर अभी बाकी है
ललक बाकी है , आसमाँ की महक अभी बाकी है
मोहरे बने हैं हम , खाता खुला है कर्मों के हिसाब का
जवाब देंहटाएंजिन्दगी मुस्करा के कहती है , सबक अभी बाकी है..
गहरी बात ........ वक़्त जिंदगी के सफ़र में बाहौत कुछ सिखाता है इंसान को ........ उम्दा रचना है ....
आप नें कम शब्दो में बहुत बड़ी बात कह दी, दिल को छु गयी आपकी ये रचना।
जवाब देंहटाएंप्रेम की क्षीण किरण मुस्कराती है , हूँ तो लता सी
जवाब देंहटाएंजान पे बनी है मगर , साँस लेने की ललक अभी बाकी है
जीने की ललक ही तो है जो बनी रहनी चाहिये.
उम्दा रचना-गहन भाव!!
जवाब देंहटाएंछिल जाता है जिगर , घबरा के मुँह फेरता है जमीर
जवाब देंहटाएंधड़कनें साँसों से कहती हैं , सफर अभी बाकी है
बहुत गहरी बाते कह दी आप ने इस सुंदर रचना मै.
धन्यवाद