मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

बड़ी बेटी का जन्मदिन

 


सुबहें गुलाबी हों ,शामें हों आसमानी 
मेरी बिटिया ,ऐसी हो तेरी ज़िन्दगानी 

तेरी आँखों से मैंने देखी दुनिया
तेरे हौसले हैं उड़ान मेरी 
तेरे पँख हैं मेरी ताकत 

घर की बड़ी बेटी होती है घर का स्तम्भ (पिलर )
जिसे हिलना मना है 
तेरी मुस्कानों से मेरा गुलशन खिला है 

तेरी राहें हों हसीन 
तुम चमको रहती दुनिया के सितारों तलक 
माँ की धड़कन-धड़कन दुआ है 

सुबहें गुलाबी हों ,शामें हों आसमानी 
मेरी बिटिया ,ऐसी हो तेरी ज़िन्दगानी 

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

चिया का जन्मदिन


आज के दिन नन्हीं चिड़िया ने थीं आँखें खोलीं हमारी दुनिया में 
किलकारी गूँजी हमारे अँगना में 
दीदी चहकी 'बहना आई ,बहना आई '
घर मेरा गुलजार हुआ 

बिन पूछे तुमने कभी कोई काम न था किया 
वक्त पर सोना ,जगना ,पढ़ना ,अव्वल आना 
इतना अनुशासन कहाँ से सीख कर आईं थीं !
अचरज है ,तुम्हारे सारे कॉम्पिटीटिव्ज भी तुम्हारे दोस्त कैसे बन जाते हैं !

फिर एक दिन तुम पँख फैलाये उड़ गईं आसमान नापने 
तुम्हारी तूलिका ने कितने ही रँग उकेरे 
ये सूरज ,ये चाँद-तारे 
ये दिन ,ये रात ,मौसम सारे
आदमी की फितरत और नज़ारे 
सबसे जीवन्त रँग वो जो तेरी आँखों में उतरे और तेरी सँगत में निखरे 
इक जादू की झप्पी के साथ जन्मदिन मुबारक 

सोमवार, 5 अक्तूबर 2020

इन्सान बचाओ , इंसानियत बचाओ


बढ़ती जा रही है कोरोना से त्रस्त लोगों की सँख्या
सुन तो रहे हैं
सुन्न भी होते जा रहे हैं
हवाओं में है कोरोना का ज़हर
ज़ेहन में हैं मेरे जाँ-बाज सिपाही
सेना , डॉक्टर ,सफाई कर्मचारी
लगा कर दाँव पर खुद को ही
निकले हैं किसी अभियान पर
शुक्रिया कर रहा है मेरे देश का कण-कण
अम्बर से बरसा रहे सुमन
हम साक्षी हैं इस क्षण के भी

मेरे देश का इक इक नागरिक लड़ रहा है लम्बी लड़ाई
खतरे में है वजूद
अदृश्य है दुश्मन
बचा रहे इन्सान का नामों-निशाँ

आओ सब एक साथ
भूल कर सारे भेद , बैर-भरम
सिर्फ हौसले की जंग काफी नहीं
जुनूने-जोश की भाषा समझता है दिल
प्रेरणा ही वो शय है जो जीत का सबब बनती है
जीतेंगे हम , मनुष्य की लड़ाई है मनुष्यता के लिए
इन्सान बचाओ , इंसानियत बचाओ
Save humans , Save humanity


शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

यादों के गलियारे से

Down the memory lane 

यादों के गलियारे से 
कुछ अल्हड़पन है , कुछ नादानियाँ 
उम्र की हैं कुछ खामियाँ 

ख़्वाब भी थे ,सुरख़ाब भी थे 
पलकों पे रखे मेहताब भी थे 
और झिलमिलाते सितारे साथ भी थे 
ज़मीनी हकीकत माँगती कुर्बानियाँ 

कुछ चेहरे भी हैं ,
ठण्डी हवाएँ भी हैं तो गर्म सदाएँ भी हैं 
और हुलसाये हुए भी हैं 
नहीं बदला है कोई , ये अजब-गजब कहानियाँ 

गढ़ा भी उसी ने ,रचा भी उसी ने 
दुनिया का नक्शा दिखाया उसी ने 
अतीत ही बोला सारी उम्र  
बचपन ही करता रहा कानों में मेरे सरगोशियाँ 

चहकती भी हैं ,टहलती भी हैं 
आँखों में छोड़ती हैं छाप 
पग-पग पे छोड़ती हैं साख 
यादों की सारी निशानियाँ 

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

सुशान्त सिंह और मौत की आहट

 


जब सुबह उठने की कोई वजह नहीं मिलती 
जब सिर पर कोई छाँव नहीं होती 
हर सुबह कोई कैसे उठे 

ये कैसे चेहरे इकट्ठे किये थे आस-पास 
वक्ते-जरुरत कोई एक भी आया न सँभालने 
और मौत ने ज़िन्दगी से साँठ-गाँठ कर ली 

सुख में तो सभी बन जाते हैं अपने 
साथ वो है जो दुख में छोड़े न कभी 
इतना आसान नहीं होता दुनिया से चले जाना 

तुम्हारी नैतिक ज़िम्मेदारी थी ,वो प्यार था तुम्हारा 
कोई बीमार है तो चारासाज बनो 
अपनी ज़िन्दगी को कोई मतलब , कोई आवाज तो दो 

वो सितारा था दुनिया को रौशनी देता 
पलट के सो गया कभी न उठने के लिये 
रूठ गया अपनी ही ज़िन्दगी से , किसे आवाज दें  

आदमी टूट जाता है इश्क के बेमौत मरने से 
किस ज़मीन पर खड़े हो ,सवाल उठेंगे 
ये बाज़ी तुम हार गये हो , अब जीतने में क्या रक्खा है 

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

पतझड़




किसी के लिये पतझड़ है महज़ एक मौसम 
गुजर जायेगा , पत्ते झड़ेंगे , फिर नये कलेवर के साथ सब कुछ नया-नया सा होगा 
किसी के लिये ठहर जाता है सीने में 
पीले पड़ते हुए पत्ते मटमैले रँग के शेड्स हो जाते हैं 
ये बेरँग धूल-धूसरित से रँग 
ज़िन्दगी के सबक सिखाते हुए ढँग 
जैसे सो जाती है फिजाँ आँख मूँद कर 
सूखे पत्तों के बीच चहल-कदमी का शोर 
किसने देखा है , कौन जानेगा 

गुजरा तो हर कोई है ,थोड़ा कम या थोड़ा ज्यादा 
पतझड़ है उदासी की छटपटाहट , हलचल की कुलबुलाहट ,सृजन की अकुलाहट भी 
और फिर धरती की सारी नमी बटोर कर , नन्हीं कोंपलें खिल उठती हैं ;
जैसे कान लगे हों बसन्त की आहटों पर 

पतझड़ है मौसमों में एक मौसम 
सब कुछ खो कर भी कुछ खड़ा है ,
जैसे जीने की ज़िद पे अड़ा है 
दिल खिला हो तो गुनगुनाता है पतझड़ भी 
गुनगुनी धूप हो ,सूरजमुखी से चेहरे हों 
मटमैले रँग भी जादुई से लगते हैं 
तिलसमी दुनिया के ख्वाब ऊँघते से लगते हैं 
जैसे रजनी सो रही हो कुदरत की बाँह पर सर रख कर 

हाँ मैं पतझड़ हूँ ,ज़िन्दगी के कैनवस पर भरा हुआ इक जरुरी सा रँग 
मेरे बिना अहमियत नहीं लाल-गुलाबी ,हरे-पीले रँगों की 
बस तुम जरा रौशनी डाल लो और हर शाख पे फूल खिला लो 

बुधवार, 12 अगस्त 2020

नियति


नियति कहती है कि कहाँ जायेगा मुझसे बच कर 
मैं तेरे पाँव की जँजीर नहीं हूँ ,
मुझसे गुफ्तगू कर ले 
कुछ मुझसे भी मुहब्बत कर ले 

हर दिन मैं तेरा आज हूँ 
तेरे भविष्य की नींव 
तूने खोले ही कहाँ अपार संभावनाओं के पन्ने 
कल जो दफ़न हुआ अतीत के पन्नों में 
सीने से निकल करेगा कितनी ही बातें 
इसलिए आज को हँस कर गले से लगा 

मैं तेरी मुस्कानों में जी जाती हूँ 
तूफानों से हँस कर गुजर जाती हूँ 
मैं गया वक़्त तो हूँ मगर लौट के भी सज सकता हूँ 
तू कभी बहना समय के सँग-सँग  
कभी हवा के रुख से उल्टा चलना 
मैं ले आऊँगी किनारे पर ,भरोसा रखना 

मै नियति हूँ ,कोई गैर नहीं ,दोस्त हूँ तेरी 
मैं ही ले आती हूँ  उन सब चेहरों को तेरे आस-पास 
जिनके साथ तेरे कर्म हैं बँधे 
तू भी लिख कुछ ऐसी दास्तान 
के मुझे नाज़ हो तुझ पर 
कुछ मुझसे भी मुहब्बत कर ले 

रविवार, 9 अगस्त 2020

वो बसता है नेकी में

जिसको दिखती ही नहीं आगे चलने की डगर 
थोड़ा आसान तो हो जाये उसकी साँसों का सफर

कौन जाने किसकी पेशानी पे क्या-क्या लिक्खा 
जो भी देते हैं लौट आता है कई गुना हो कर 

जिसको हम ढूँढ़ते हैं इबादत-गाहों में 
वो बसता है नेकी में ,अपने बन्दों में आता है नजर 

लोग करते हैं दया ,दान और करुणा 
मजबूरी ,धर्म ,अन्ध-विष्वास या जोर-जबर्दस्ती से डर कर 

तेरे अँजुरि भर देने से ,बदल सकती है किसी की दुनिया 
जो तू रख सके तो रख सबकी ही खबर 

ये महल , अट्टालिकायें ,सोने सी लँका 
अधूरी हैं ,जो नहीं है किन्हीं दुआओं का असर 

मैं तो सिर्फ आईना दिखाऊँगी 
जो तेरा सोया ज़मीर जगे तो सोच , ठहर 

कभी किसी के दर्द का हिस्सा तो बन , 
किसी की मुस्कराहट का कारण तो बन 
तेरे आड़े वक़्त में यही पल आ खड़े होंगे ,तेरी ढाल बन कर 
शारदा अरोरा 

सोमवार, 3 अगस्त 2020

रक्षाबंधन


रेशमी सी डोर है रिश्तों की, न उलझने देना
नाजुक से बन्धन हैं ,न दरकने देना
साझीदार हो बचपन के,
दुख-सुख के साथी
बेशक हैं जुदा-जुदा अपनी राहें
ठन्डी सी हवाओं के माफिक, मिलने की दुआ करना
आबाद रहें ये रिश्ते , जुड़ते हैं जड़ों से ,तो खिल जाते हैं चेहरे
गुलशन की उम्मीदों पर खरा उतरना
ये रक्षाबंधन है, त्योहार है इक पावन सा
कोई खड़ा है तुम्हारे साथ मनभावन सा ,
इस रिश्ते को हर हाल संभाले रखना

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

थोड़ा सा प्यार


थोड़ा सा प्यार घोल लेना ,सब आसान लगेगा
दुख क्या चीज है ,तूफान भी मेहमान लगेगा

अजब हकीकत है ज़िन्दगी की
कभी जोग , कभी जँग , कहीं टूटन-बिखरन
तू भी कोई रँग घोल दे ,
दूर नहीं अरमान लगेगा

रँगीन बोतलों में बिकते हैं इमोशन्स
सोडा-वॉटर की तरह बैठ जाते हैं पलों में
जो मिला है उसी में थोड़ा सा रस घोल दे ,
पाँव के नीचे आसमान लगेगा

बेचैनियों के बिस्तर पर नीँद आयेगी न कभी
हालत के सजदे में सोच का रुख मोड़ दे
काँटों के बिस्तर पर भी ,
फूलों की महक का अनुमान लगेगा

थोड़ा सा प्यार घोल लेना ,सब आसान लगेगा
दुख क्या चीज है ,तूफान भी मेहमान लगेगा 

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

माँ के लिए श्रद्धाँजलि


माँ , आप चली गईं हैं ,
मेरे ज़ेहन के चप्पे-चप्पे पर छाप आपकी है

नहीं भूलता है माँ की आँखों की पुतलियों का रँग भी
वो ममता भरी आँखों में तैरता हुआ निष्छल सा प्यार

वो पलने में झुलाती हुई माँ और नन्हीं जान का रिश्ता
उम्र भर साथ चलता है वो ठण्डी  छॉंव सा नाता

नहीं आसान होता है यादों के किसी वैक्यूम को भरना
जो वजूद का हिस्सा हो उसके बिना चलना
ये वक्त की ही फितरत है , दवा बन कर भरपाई करना

मगर माँ ,आप ही बोलती हैं मेरे मुँह से कितनी ही बातें
वो मुहावरे ,वो सहज रहने को काम में डूबने के नुस्खे
वो कर्मों को किस्मत बताती हुईं आप
वो कर्मठ ,समर्पित ,सहज और मिलनसार व्यक्तित्व
नियति के क्रूर हाथों में कभी न डोलती हुईं आप
वो जिम्मेदारियों को हँस कर गले से लगाती हुईं आप
मेरे अनुशासित , रोबीले पिता का सम्बल ,
वो आपका अदब ,उनके अदब में चार चाँद लगाती हुईं आप
मेरे बचपन की किताब के हर पन्ने पर आप
मेरी नीँव में पल-पल मुस्कराती हुईं आप 

शनिवार, 18 जुलाई 2020

मौत से रू-ब-रू

जब हम रू-ब-रू हो कर आते हैं मौत से
जैसे बुझती हुई सी लौ दिप से जल उठती है सीने में
ज़िन्दगी कुछ इस तरह मेहरबान हुई सी लगती है
वो पेड़-पौधों की मूक जुबानें ,वो लम्हें ,वो सारे जरिये
बोलते हुए से लगते हैं
हाँ कह डाले हम सब कुछ दुनिया से
वो कड़ियाँ जोड़ते हैं
ज़िन्दगी के सजदे में ज़िन्दगी का रुख ही मोड़ते हैं

हर कोई नहीं होता इतना खुशनसीब
हर किसी की राह में फूल ही बिछे हुए नहीं होते
हर किसी के लिए दुआओं में उठे हुए हाथ भी नहीं होते
चलना पड़ता है अपने ही हौसले के दम पर
गर जली हो कोई शम्मा सीने में ,
जो बदल सके अँधेरे को उजाले में
उतनी ही रौशनी काफी है चलने के लिए

उन सारे लम्हों और जज़्बातों को सलाम
जो ले आये हैं किनारों पर ,भँवर के उन तूफानों को भी सलाम
ऐतबार  की कश्ती के उस मल्लाह को सलाम
मेहरबान हुई है ज़िन्दगी ,इसे फूलों सा सँभालो
जो सुख दे आँखों को और फिजां को भी महका दे
एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े 

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

समय गढ़ रहा है

अभी वक्त नहीं है ,अभी ख्वाबों को रख ताक पर
समय गढ़ रहा है ,रख के तुझको ही चाक पर

ख्वाब होते हैं ज़िन्दगी की तरह
घूँट-घूँट पी कर सँभाले हुए
वजह जीने की बन कर दिन-रात पाले हुए

वक्त की ये अदा है,
देता है कभी कड़वी घुट्टियाँ भी
अभी लौटो तुम अपने घरों को
अभी तुम सबब बनना किसी गरीब के निवाले का ,
झुकते कन्धों के सहारे का ,किसी बीमार की सेवा का
अपनी जड़ों को पानी देना
अपनी प्यास को रवानी देना
हौसले को कहानी देना

कुदरत सिखलाती है अपने ही ढंग से
अभी वक्त है मनन का , तपन का , सृजन का
बची इन्सानियत तो बचेंगे हम भी
वक्त आयेगा खिल उठेंगे फूल ख्वाबों के भी
लहलहायेंगे दिल ,मुस्करायेंगे फूल बूटे पे समय की शाख पर

अभी वक्त नहीं है ,अभी ख्वाबों को रख ताक पर
समय गढ़ रहा है ,रख के तुझको ही चाक पर

ताक =ऊपर की शेल्फ
चाक =जिस पर कुम्हार बर्तन गढ़ता है

मंगलवार, 16 जून 2020

सुशांत सिंह : चकाचौंध और अँधेरा

कौन जाने , कौन कितना अकेला है 
भीड़ में भी तन्हां है, जिसके आस-पास रौशनी का मेला है 
इतनी चकाचौंध थी तो नाक के नीचे इतना अँधेरा क्यों ?
सलोने से चेहरों की उदास दास्तानें 
बुलन्दी पे पहुँचे हुए सितारों की टूटन 
 वो अकेलापन , वो घुटन 
क्यों उठा लेता है मन अनचीन्हा ? 
सवाल कई हैं , जवाब एक नहीं 

मासूमियत गई पानी भरने 
कँक्रीट के जँगल में दिल नहीं बसते 
उसके दिल से उठता धुआँ किसी को न दिखा 
ज़िन्दगी एक न्यामत है 
कहती है कि मैं बूँद हूँ बेशक ,
मगर सागर का अस्तित्व मुझसे है 
आसमान रो उठा है 
एक बार जो रूठी ज़िन्दगी , फिर वो सींची न गई 
फिर वो सींची न गई 



शुक्रवार, 5 जून 2020

इम्प्रेशन्स

कहाँ धूमिल पड़ते हैं इम्प्रेशन्स
जो नक्श खुद गये सीने में
नहीं मिटते हैं उम्र भर
वो पहली-पहली बार के देखे-सुने
जो राय कायम कर ली किसी के बारे में

आदमी बदलना भी चाहे तो
आड़े आ जाती हैं अपनी ही मान्यताएँ
जो कल था वैसा ,आज भी वैसा ही मिलेगा
तू नहीं बदला , करता रहा ये तेरा है ये मेरा
ये दुनिया तो ऐसे ही चलेगी
जो कल था दोस्त वो ही दुश्मन हुआ है
तो जो आज दुश्मन है वो कल दोस्त क्यूँकर हो नहीं सकता
खोल कर रख तो सही दिल की किवाड़ें

आदमी मात खाता है
बाँध लेता है अपने ही पैरों में जँजीरें
क्या-क्या गुल खिलाती हैं अपनी रची ये धारणाएं
खुद ही खीँच लेता है पत्थर पर लकीरें
इसीलिए नहीं बह पाता है वक़्त के सँग-सँग
ये आदमी की फितरत है
चुभती बातें तो सालों-साल ज़िन्दा रखता है
अच्छाइयों की उम्र थोड़ी होती है , भुलाने में देर कहाँ रखता है
जब-जब जगमगाते हैं अपने विष्वास और आस्थाएं
दिखलाते हैं राह आदमी को
खुल जाती हैं अपार सम्भावनाएँ 

मंगलवार, 26 मई 2020

धूप

धूप की सुनहली बातें 
धूप से है रौशनी 
पेड़-पौधे , जीव-जन्तु ,सारे नज़ारे 
धूप दुनिया का सबब है 
धूप से है कुल जहान 

धूप गढ़ती है कसीदे ,
आदमी की शान में 
पाँव के छाले ये कहते ,
धूप के टुकड़ों ने लिक्खी 
तेरी हिम्मत है नादान 

आदमी को चाहिए 
गुनगुनी हो धूप तो 
मजा ले सुबह का 
दोपहर की धूप ने ही ,
लिखनी है तेरी दास्तान 

धूप है गर यातना तो 
धूप ही क़दमों का दम 
धूप कहती दूर मंज़िल 
राह में रुकना नहीं है 
धूप ही तो तेरी उड़ान 

धूप है दुनिया का चेहरा 
सामने है अलमस्त सहरा 
धूप तेरी मुश्किलें हैं 
धूप हैं तेरी झुर्रियां 
धूप है तेरे मन की हालत 
धूप है तेरे सफर का सजदा 
धूप ही ठंडी छाँव है 
खिल उठेगी जब-जब तेरे चेहरे पर 
बन के तेरी ही मृदु ,सौम्य मुस्कान 

शुक्रवार, 15 मई 2020

अदृश्य कोरोना


तुझे बाहर न देख कर ,
फिजाँ भी है खामोश ,ऐ इन्साँ
आये हैं परिन्दे बस्तिओं के करीब ,
तेरा दिल बहलाने को

पेड़ों ने ली अँगड़ाई है , नव-अंकुर फूले
कोयल भो कूकती है
मौसम तो खिला हुआ है
नजर भर के तूने कभी देखा ही नहीं

पर्वत जँगल अब दूर से ही साफ नजर आने लगे हैं
सुन रहे हैं कि जँगली जानवर अब जँगलों से सटी सड़कों पर अक्सर आने लगे हैं
इनके हिस्से की जमीन तूने कब्जाई हुई है
अपने जीने की चाहत में तुझे इन सबका योगदान दिखा ही नहीं

हर ओर है अदृश्य कोरोना
हर चौराहे ,गली ,मोड़ पर रख दिया हो जैसे कब्रिस्तान
याद रख मौत को हर पल , हर कर्म से पहले
जी ले हर घडी को जी भर के , वक्त है जब तक मेहरबान 

इन्सान बचाओ , इंसानियत बचाओ

बढ़ती जा रही है कोरोना से त्रस्त लोगों की सँख्या
सुन तो रहे हैं
सुन्न भी होते जा रहे हैं
हवाओं में है कोरोना का ज़हर
ज़ेहन में हैं मेरे जाँ-बाज सिपाही
सेना , डॉक्टर ,सफाई कर्मचारी
लगा कर दाँव पर खुद को ही
निकले हैं किसी अभियान पर
शुक्रिया कर रहा है मेरे देश का कण-कण
अम्बर से बरसा रहे सुमन
हम साक्षी हैं इस क्षण के भी

मेरे देश का इक इक नागरिक लड़ रहा है लम्बी लड़ाई
खतरे में है वजूद
अदृश्य है दुश्मन
बचा रहे इन्सान का नामों-निशाँ

आओ सब एक साथ
भूल कर सारे भेद , बैर-भरम
सिर्फ हौसले की जंग काफी नहीं
जुनूने-जोश की भाषा समझता है दिल
प्रेरणा ही वो शय है जो जीत का सबब बनती है
जीतेंगे हम , मनुष्य की लड़ाई है मनुष्यता के लिए
इन्सान बचाओ , इंसानियत बचाओ
Save humans , Save humanity


सोमवार, 27 अप्रैल 2020

परिन्दगी के लिए


हौसले की जँग ज़िन्दगी के लिए
ऐ ज़िन्दगी बता , और क्या चाहिए बन्दगी के लिए
हर शर्त सर-माथे पर
ज़िन्दगी की , ज़िन्दगी के लिए

लबों पे हो मुस्कराहट
काबू में हो धड़कन की सुर-ताल
बजा ले मुझको ऐ ज़िन्दगी ,
और क्या चाहिए साजिन्दगी के लिए

धूप-छाया की कहानियों में उलझे तेरे किरदार
तेरे आँचल की है बस दरकार
सुकून दे मुझको ऐ ज़िन्दगी
और क्या चाहिए ताज़िन्दगी के लिए

दूर-दूर बैठे भी हम सब हैं साथ
इक डाल पर बैठे परिन्दों की तरह
पँख हैं तो है परवाज भी हासिल
और क्या चाहिए परिन्दगी के लिए 

रविवार, 5 अप्रैल 2020

दिया

दिया है प्रकाश का नाम 
जिसके आगे अन्धकार हारा है 
मन की बाती और संकल्पों का तेल 
और फिर देखो दिव्यता का खेल 
सम्पूर्ण विश्व साथ हो 
सर पर माँ भारती का हाथ हो 
मँगल की है कामना 
माँगल्य का ही वास हो 
सँताप न व्यापे कभी 
और दिव्यता का साथ हो 

शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

सवालों के घेरे में इन्सानियत

क्या कहें अब मूक ज़ुबानें 
सुलगती चिंगारियाँ और फुंके घर-बार दुकानें 
कुर्बान हो गईं कितनी ज़िन्दगियाँ 
नफरत की जलती मिसालें 

अब नहीं बनना है कहानियाँ हमको 
नहीं झेलने हैं और बँटवारे के दर्द 
सदियों को झेलना पड़ता है 
ढोतीं हैं पीढ़ियाँ बोझा 
खोल के देख ले तू ज़हन की किताबें 

पहले आप , पहले आप वाले देश में 
मैं ही मैं , मैं ही मैं कैसे हुई 
अपनों में कौन बेगाना है 
कोई तो पूछ बताये हमें 
सवालों के घेरे में इन्सानियत 
सोये ज़मीर को जगाओ तो जानें 

बुधवार, 8 जनवरी 2020

बड़ा मुबारक

वो भी डोलती होगी किसी के अँगने में 
होगी वो भी किसी की जाँ ,
झूलती होगी ममता के पलने में 

प्यार उमड़ता है मुस्करा उठते हैं 

अहसास उठते हैं रह-रह के सीने में 
सींचता है कोई माली हर फूल को 
आबाद रहे हर फूल की दुनिया 
गुलशन के कोने-कोने में 

बड़ा मुबारक है आज का दिन 

सूरज जो चढ़ा खिड़-खिड़ करता 
कितने सारे चाँद उगे हैं ,
महफ़िल के अफ़साने में 

मेरी दुआओं का असर है शायद 

हसीन से सपनों में कोई रँग भरता 
तुम छम-छम करती आ जाओ 
कैद कर लेंगे तुम्हें सफर सुहाने में