मंगलवार, 31 मार्च 2009

कुछ तो हूँ मैं

मैं कोई नहीं हूँ

कुछ तो हूँ मैं

आस्था और विष्वास का दीपक

जगमगाता हुआ है

क़दमों का मेरे जंगी हौसला

मुस्कुराता हुआ है

कुछ तो मेरे मन ने

सहेजा हुआ है

चलती साँसों को मेरी

महकाया हुआ है

कुछ तो हूँ मैं

सोमवार, 30 मार्च 2009

हवाओं को दायरे में


मत कैद करना


हवाओं को दायरे में


मत रोकना


पँछियों को पिंजरे में


इनकी उड़ान ही तो है


पहचान इनकी


मुड़ के देख


अपनी उड़ानों को


क्या कोई रुका मन्जर


दे सका है सुकूनों को


पँख फैलाते ही पूरा आसमान नजर आता है


हवा अपनी , खुशबू अपनी , खुदा मेहरबान नजर आता है


पँछी अपने , इनकी उड़ानों में पूरा जहान नजर आता है



मंगलवार, 24 मार्च 2009

ख़ुद से

.


लबों को सीते वक़्त


मन को भी सी लेना


इसको आदत है


टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलने की


अपनी पगडंडी पर


डगमगाता है


सधे क़दमों चलने वालों का


ध्यान नहीं बंटता है


यात्रा का अभिवादन ही


उनके आगे-पीछे बसता है


.



चलता तो है


डगमगाता है तू


बैसाखी पकड़ता तो है


धराशाई भी हो जाए तो क्या


उठ कर फ़िर से चलने का


जज्बा मचलता तो है

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

चाहों को जगाना है


घर नहीं बसते हैं राहों पर


घर बसते हैं चाहों पर


चाहों को जगाना है



निगाह उठा कर , बाहें फैला कर देखो


सिमट आता है आकाश बाहों में


बाहों को फैलाना है



जगा ले हौसले अन्दर


तेरे हौसले की बुलन्दी से ज़माना है


हौसलों को उठाना है



प्यार और खुशी के मोती


पलट कर आते हैं दुगने होकर


दोनों हाथों से लुटाना है



सच और तहजीब से


दीन-दुनिया की रोशनी है


दुनिया को सजाना है



बुधवार, 18 मार्च 2009

किसी चिँगारी को हवा दे


किसी चिँगारी को हवा दे


वो जलना चाहे


तेरे सीने में दफ़न है


वो पलना चाहे


तेरी नींदों में जगी है


तेरे सँग-सँग वो चलना चाहे


कुछ ऐसी फिजाँ दे


तेरी ताकत में वो ढलना चाहे


तेरी मेहनत के दम पर


ही वो खिलना चाहे


मत हैराँ होना


किसी रोशनी में वो रखना चाहे



सोमवार, 16 मार्च 2009

मरहमों में जिदगी सा कोई फानी नहीं

एक संवेदन शील मन दूसरे का दर्द भी जी लेता है , उसे शब्दों में भी ढाल लेता है | बस ऐसे ही किसी दर्द की नजर ये पंक्तियाँ


क्यों मनाएँ हम


ग़मों की बरसियाँ


बुक्का फाड़ के


रोते हैं अहसास


क्या कोई आसमाँ


मेरा न था


मेरी राहों में क्या


कोई सबेरा न था


क़दमों के निशाँ


कहते हैं रास्ता


दिल जला कर ही सही


अँधेरा कहीं छोडा न था


राहे-वफ़ा की राह पर


जिन्दगी को साथ लेकर


चलते रहे


जिन्दगी का घूँट पीकर


दिये की तरह जलते रहे


जिन्दगी के घूँट ही तो


जिन्दगी हैं


क्यों भुलाएँ जश्न को


क्यों मनाएँ बरसियाँ


इन मरे हिस्सों को जिला लें


सब्र और जश्न को मिला लें


थोड़ी राहें सजा लें


जिन्दगी को एतराज न हो


ऐसा कोई मंजर सजा लें




साजिशों में जिन्दगी का कोई सानी नहीं


मरहमों में जिन्दगी सा कोई फानी नहीं


शिकार होते दीन-ईमां , जंग लड़ती आशना


अपनी धड़कन भी पराई , रूह का वो कत्ले-आम


है अदब भी फासले का दूसरा नाम


बोलती हैं दीवारें भी इस तरह


दो घूँट अपनी आशना पी कर


आसमां के गले लग आयें
्या हर्ज़ है गर , थोड़ी जिंदगानी जी आयें


बुधवार, 4 मार्च 2009

रे मन


रे मन


तृष्णा को लगाम दे


िटलर को मात दे देगी


दूध उफन कर बिखर जायेगा


ीछालेदर कर देगी


परछाईओं के पीछे दौड़ोगे


ुछ भी हाथ आयेगा


आँखें अभ्यस्त होंगी तो


ूरज भी नजर आयेगा


तमाशा बनने से पहले


माशबीन बन जाना


चढ़ते सूरज की किरणें


़ुद ही तुझे रास्ता देंगीं



मुट्ठी भर खून


मुझे देना कोई ऐसा पथ


काँटे बिछे हों जिन राहों पर


मैंने कोई कवच नहीं पहना


रूह मेरी है बिना लिबासों के



मुझको मालूम है बिन हवाओं के


कोई सफर नहीं होता


घर में बैठे ही यूँ भी


गुजर नहीं होता



मुट्ठी भर खून रगों में


थपकियों ने उँडेला होता है


काँटे क्योंकर सोख लेते हैं


नमी सारी , लहू लहू होता है

सोमवार, 2 मार्च 2009

सफर में कोई आड़ तो चाहिये


दिल की तपन माथे तक पहुँचती है


काँटा जो चुभे , दिल में ही गड़ा रहता है


बड़ी धूप है रेगिस्तानों में


सफर में कोई आड़ तो चाहिये


काँटों की बाड़ में , कोई खुमार तो चाहिये


काँटा तो दूर हुआ , चुभन अभी बाकी है


जख्म हैं सिले हुए , अहसास अभी बाकी है


ख़ुद को छलने के लिये , उधार ही सही


दिल की दौलत बेशुमार चाहिये