मुझे न देना कोई ऐसा पथ
काँटे बिछे हों जिन राहों पर
मैंने कोई कवच नहीं पहना
रूह मेरी है बिना लिबासों के
मुझको मालूम है बिन हवाओं के
कोई सफर नहीं होता
घर में बैठे ही यूँ भी
गुजर नहीं होता
मुट्ठी भर खून रगों में
थपकियों ने उँडेला होता है
काँटे क्योंकर सोख लेते हैं
नमी सारी , लहू लहू होता है
bahut gahre aur samvedansheel bhav.
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह इस बार भी प्रभावित हूं। बधाई।
जवाब देंहटाएंशारदा जी नकास्कर,
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से बेहद उम्दा लेखन ,बहोत ही गहरे भाव,, एक शंका है कृपया निदान करें हलाकि मैं आपभी लेखन सिखने की प्रक्रिया में हूँ पूछना वाजिब समझता हूँ ... के क्या मुठ्ठी भर खून होता है ? पूछने का मतलब ये है के ये तो तरल पधार्थ है ...
कृपया अन्यथा ना ले मेरी शंका का समाधान करें..
आपका
अर्श
pahle jyada majboot kavita . bdhai
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएंArsh ji
जवाब देंहटाएंखून का कोई नाप-तोल तो नहीं लिखा जा सकता कि कितना बढा , ये कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि जैसे जिन्दगी बढ़ गयी , सुख की साँस आ गयी | जब कोई हौसला अफजाई करता है तो क्या ऐसा नहीं लगता | और चुभने वाली बातें जैसे सारा खून निकाल लिया हो , नमी यानि प्यार बचा ही न हो | बस यूं समझ लो कि कभी कभी शब्दों का प्रयोग अपने आप हो जाता है जैसे आजकल हिंद युग्म के फरवरी माह के यूनिकवि की कविता में महसूसना शब्द आया है , पर हिंदी में तो महसूस करना शब्द ही सही है | तो बस ये कवि की मर्जी है वो कैसे क्या कहना चाहता है |
बहुत अच्छा लगा आपने टिप्पणी की |
मुझे न देना कोई ऐसा पथ
जवाब देंहटाएंकाँटे बिछे हों जिन राहों पर
मैंने कोई कवच नहीं पहना
रूह मेरी है बिना लिबासों के
शारदा जी बहुत बढ़िया रचना . आभार
बहुत ही बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा है !!
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