दिल की तपन माथे तक पहुँचती है
काँटा जो चुभे , दिल में ही गड़ा रहता है
बड़ी धूप है रेगिस्तानों में
सफर में कोई आड़ तो चाहिये
काँटों की बाड़ में , कोई खुमार तो चाहिये
काँटा तो दूर हुआ , चुभन अभी बाकी है
जख्म हैं सिले हुए , अहसास अभी बाकी है
ख़ुद को छलने के लिये , उधार ही सही
दिल की दौलत बेशुमार चाहिये
Waah !!
जवाब देंहटाएंPeeda ko badi hi sundar abhivyakti di hai aapne..
Sundar rachna....
पहले की ही तरह इस बार भी सुन्दर रचना । बधाई
जवाब देंहटाएंसफ़र है तो धूप भी होगी, जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में शामिल, जो निकल सको तो चलो..
जवाब देंहटाएंसाथ ही सबका प्यार और टिप्पणियां भी चाहिए।
जवाब देंहटाएंख़ुद को छलने के लिये , उधार ही सही
जवाब देंहटाएंदिल की दौलत बेशुमार चाहिये
waah bahut sundar
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद |अंशुमाली जी आपकी टिप्पणी पढ़ कर बरबस मन मुस्करा उठा , मन को खिलखिलाने में देर ही कितनी लगती है | अपनी रचना की चार पंक्तियाँ लिख रही हूँ
जवाब देंहटाएंमुट्ठी भर खून रगों में
थपकियों ने उंडेला होता है
कांटें क्यों कर सोख लेते हैं
नमी सारी , लहू लहू होता है
टिप्पणियाँ वाकई थपकियाँ हैं |
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अच्छी कही आपने ...
जवाब देंहटाएंसफर में कोई आड़ तो चाहिये
जवाब देंहटाएं-क्या बात कही..बहुत खूब!!
दर्द छलकता है इस रचना से ...
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
ख़ुद को छलने के लिये , उधार ही सही
जवाब देंहटाएंदिल की दौलत बेशुमार चाहिये
और तो अंशुमाली जी ने कह दिया है।
सुन्दर रचना