शुक्रवार, 20 मार्च 2009

चाहों को जगाना है


घर नहीं बसते हैं राहों पर

घर बसते हैं चाहों पर

चाहों को जगाना है


निगाह उठा कर , बाहें फैला कर देखो

सिमट आता है आकाश बाहों में

बाहों को फैलाना है


जगा ले हौसले अन्दर

तेरे हौसले की बुलन्दी से ज़माना है

हौसलों को उठाना है


प्यार और खुशी के मोती

पलट कर आते हैं दुगने होकर

दोनों हाथों से लुटाना है


सच और तहजीब से

दीन-दुनिया की रोशनी है

दुनिया को सजाना है



2 टिप्‍पणियां:

आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है