सोमवार, 19 दिसंबर 2016

तुम्हारे जाने के अहसास

चलो तुम्हारे जाने के अहसास को अभी ही जी लेते हैं 
थोड़ा गम पी लेते हैं 
ताकि तुम्हारे जाने के वक़्त आँख में आँसू न हो 

तुम्हारी बाइसिकिल जो तुम घर आ कर चलाया करतीं थीं 
पूछ रही है कि अब आगे इन्तिज़ार कितना लम्बा होगा 
कितनी ही चीजें जो तुम खरीद कर लाईं थीं 
बोलती हुईं सी लगतीं हैं 
कैसे इन्हें अनदेखा करूँ 
मेरी पसन्द को ध्यान में रख कर तुम्हारे लाये हुए फूल,फ्लावर पॉट्स , लैम्प्स 
सब झक्क से रौशन हो उठते हैं 
तुम्हारी चाहत के फूल खिल उठते हैं 

आओ के गले लग जायें 
ये जादू की झप्पी तुम्हें महफूज़ रक्खे उम्र भर 
माँ का आँगन बच्चों की उड़ानों के लिए हमेशा छोटा पड़ जाता है 
जाओ तुम जरा घूम के आओ 
पँख फैलाओ के आसमान तुम्हारे इन्तिज़ार में है 

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

थोड़े चूल्हे जल लेते

इक दिन निजता ले आती है चौराहे पर 
अच्छा होता बाँट जो देता , पैसा जितना ज्यादा था 
चेहरों पर मुस्कान देख कर , पा लेता थोड़ी साँसें 
थोड़े चूल्हे जल लेते , थोड़े अरमाँ पल लेते 

हेरा-फेरी , काला बाजारी , टैक्स की चोरी , कितने दिन !
छुपा न सकेगी लीपा-पोती 
आज बहाने साथ न देंगे , ज़मीर जगा कर देख ले अपना 
कितना पहनेगा , कितना ओढ़ेगा 
सोने का निवाला न निगल पायेगा 

अति कहाँ चुप बैठती है , कुछ न कुछ तो जरूर होना था 
हिला के नींव बीज कोई बोना था 
देश के हित में अलख जगा ले , आहुति दे स्वार्थ की अपने 
अपनी राह में फूल खिला ले 

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

इक वो थी दिवाली

इक वो थी दिवाली ,
दिवाली दियों वाली
मुँडेरों पर रौशन कतारें दियों की
हर घर में लटकता दिये का कंडील
लक्ष्मी गणेशा के आगमन की तैयारी
अन्दर-बाहर बुहारा
दिये सा महकता हुआ मन-प्राण , उमंगे टपकती हुईं
यूँ लगता कि पधारे हैं रिद्धि-सिध्दि के दाता गणेश , छम-छम करतीं हुईं माँ लक्ष्मी
ये पण्डित ,ये मन्दिर गुरूद्वारे के लिए मिठाई
ये दरोगा , ये अफसर , इष्ट-मित्रों , काम करने वालों के लिए मिठाई
बच्चों के लिए थोड़ा सा आतिश-बाजी का शगुन
दौड़-दौड़ कर ख़ुशी से न फूले समाते
पास-पड़ोस में प्रसाद की थालियां पहुंचाते

इक ये है दिवाली ,
नकली झालरों सी सजाई , आडम्बर से भरी
आज हर सम्बन्ध को है भुनाया जाता
ओहदे के हिसाब से उपहार पहुँचाया जाता
काम निकलवाने का ये नुस्खा भी अपनाया जाता
नाम हो इसलिए मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाया जाता
नाराज़ न हो जाएँ कही लक्ष्मी गणेश , डर के मारे पूजा भी निबटाई जाती

इक वो थी दिवाली ,
कच्ची मिट्टी सी महकती हुई
इक ये है दिवाली ,
बाज़ार के नकली सामानों से अटी ,
नकली मुस्कराहटों में कहीं खो गये अपनत्व की



सोमवार, 19 सितंबर 2016

बृंदा हो

अपनी प्यारी सी सखी के लिये  ....... 

तारों में ज्यों चन्दा हो 
नाम सार्थक करतीं अपना 
अँगने में ज्यों बृंदा हो 

पावन मन है ऐसा तुम्हारा 
पीड़ पराई समझो जैसे 
अपने गले का फन्दा हो 

आसाँ नहीं ये राह पकड़ना 
छोड़ आई हो घर को ऐसे 
जैसे कोई परिन्दा हो 

सींच रही हो जड़ों को अपनी 
फूले-फले ये बगिया तुम्हारी 
रौशनी का तुम पुलिन्दा हो 

शनिवार, 6 अगस्त 2016

मेरे फूल खिले हैं कहीं न कहीं

आजकल मैं तुम्हारे आने की तैयारियों में जी लेती हूँ 
तुम्हें ये पसन्द  है , तुम्हें वो अच्छा लगता है 
इन्हीं ख्यालों में रह-रह के मुस्कुरा लेती हूँ 
कहीं ये मेरे जीने का शगल तो नहीं 
कुछ भी हो , है हसीन ये बहाना भी बहुत 
तुम आओ तो मुमकिन है इतनी फुरसत न मिले 
आजकल तुम्हारे चेहरे मुझसे अक्सर बतिया लेते हैं 
मेरे फूल खिले हैं कहीं न कहीं 
दिल की क्यारी यूँ चहकने लगती है 
दर-ओ-दीवार महकने लगते हैं 
ज़िन्दगी एक तरन्नुम सी बजने लगती है 
वो रौनक जो तुम्हारे साथ आयेगी , 
मेरे ख्यालों की उँगली पकड़े मुझसे लिपटने लगती है

शनिवार, 18 जून 2016

खुशबू का बाग़

जीवन उसका दिया है , सँभालेंगे हम
कुछ भी हो , कैसे भी हो , निभा लेंगे हम
सफर का सजदा करते हुए , लम्हे का मजा उठा लेंगे हम

चेहरा ये मेरा किताब हुआ है
पढ़ ले कोई भी , बेनकाब हुआ है
फिजाँ ही फिजाँ है जो अन्तस में मेरे , खुशबू का बाग़ खिला लेंगे हम 

जुगनुओं की तरह जगते बुझते रहे हैं 
हौसले हैं ये मेरे , निभा ही लिए हैं 
खोल दरवाजे , कोई आया खड़ा है ,
दस्तक है उसकी , दिल में बसा लेंगे हम 

शारदा 

शनिवार, 30 अप्रैल 2016

नन्हीं सी गिलासी



तेरे बचपन की गिलासी 
माँ ने पिलाया होगा पानी ,
और दी होगी ममता की घुट्टी 

है ये तेरे बचपन की साथी ,
मूक गवाही नन्हीं हथेलियों की 
वाकिफ़ है ये उन हथेलियों की कंपकंपाहट से भी 
छुटते-छुटते भी सँभालने की कोशिश से भी 

एक-एक कर छूट गये पलने भी और बचपन भी 
ममता ने बिछाये होंगे फूल , और बुने होंगे सपने भी 
आँख का तारा कहने वाले खुद आसमान के तारे बन बैठे 
ये निशानियाँ भी ले आती हैं सारी यादें 

फूल खिला कर बैठे हैं हम , दीप जला कर बैठे हैं 
बचपन की सोहबत में हम , आज फिर आकर बैठे हैं 
नन्हीं सी गिलासी ने पानी पिलाया आज फिर ,
यादों का घूँट-घूँट भर 

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

परवरिश की फसल लहलहाई है


सत्ताइस साल पहले दुनिया छोड़ गईं दीदी की नातिन ने जो सैनफ्रांसिस्को में रह रही है , जब ये फैसला लिया कि  वो अपने नाम के  बीच में दीदी का नाम जोड़ लेगी ...... आँखें भी नम हो उट्ठीं  ......

एक बार फिर मैं जी उट्ठी हूँ 
तेरे नाम के अक्षरों में झिलमिला रही हूँ मैं 
ज़माने ने मुझे भुला ही देना था 
मेरे नाम को अपने नाम में जगह देना , हाँ ये आसान नहीं है 
हर बार तेरे नाम के साथ-साथ पुकारी जा रही हूँ मैं 

कोई धागा है प्रेम का 
कोई दीप है जो जल रहा है 
नाज़ों से पाला था जिन्हें , उसी परवरिश की फसल लहलहाई है 
कि हैरान हो रही हूँ मैं 

मेरे बच्चों , ये बाग खिला ही रहे 
तुम ज़माने को बदलने का दम भी रखते हो 
महकने लगी है फ़िजां 
कानों में घुल गई है मिठास 
मैं ही मैं तो हूँ , गुनगुना रही हूँ मैं 
तुम्हारी आँख की नमी में आज भी मुस्कुरा रही हूँ मैं 
तुम्हारे साथ-साथ चल रही हूँ मैं 


मंगलवार, 1 मार्च 2016

खो जायेंगे ये रिश्ते

मैं कोई टिश्यू की तरह नहीं हूँ 
के वक़्त जरुरत तो काम ले लो मुझसे , आँसू पोंछ लो अपने 
फिर भुला दो मेरे वज़ूद को भी 

नम हो आती हैं आँखें 
क्यूँ बहाऊँ मैं मोती , जब नहीं तेरे लिये कोई कीमत इनकी 
तेरी अमीरी का शगल होगा ये 
दिल का भी रिज़क है कितना तेरे पास 

दो वक़्त की रोटी , ओढ़ने को छत , इससे आगे भी है जहाँ दूर तलक 
तू भाग रहा है जिसके पीछे-पीछे , खाई है उसके आगे-आगे 
तेरी नजरों में दुनियादारी ही रही , तू व्यापारी ही रहा 
हमें मालूम है , हैं अपने आसमाँ तक अलग-अलग 
सिक्कों की खनखनाहट में खो जायेंगे ये रिश्ते भी 
आँख से देखना , हैं ये ज़ख्म रिसते भी 
मैं कोई टिश्यू की तरह नहीं हूँ 

रिज़क =धन , दौलत 

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

चिरनिद्रा में सो गये तुम

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विशाल , जिसे मैंने बच्चे से बड़े होते हुये देखा , आज उसी को श्रद्धाँजलि दे रही हूँ। उसके भोलेपन और सादगी को मैं बार-बार प्रणाम करती  हूँ।

चिरनिद्रा में सो गये तुम
माँ का दिल ये कैसे माने
तुम्हारी जैकेट , तुम्हारी दवा की खुली शीशी
तुम्हारे बिस्तर पर पड़ी सलवटों से
अभी अभी तुम्हारे उठ कर जाने का अहसास
अभी तो तुम्हारे बोल भी सुनाई देते हैं
पापा की बुझी-बुझी नजरें , बहना का रोता हुआ दिल , पूछ रहा है
भला ऐसे भी कोई जाता है दुनिया से , बेवक्त , बेवजह
इन्सान चला जाता है , पर क्या अहसास कभी मरते हैं 

ज़िन्दगी इतनी नश्वर है के ,
बिखरे तो समेटी ही नहीं जाती 
यूँ तो जा रहे हैं हम सभी ,
काल के मुँह में , एक एक दिन , लम्हा-लम्हा 
यूँ मुँह मोड़ कर चले गये तुम , कोई कुछ कर न पाया 
चाचा बुआ , हम सबके अजीज , माँ-पापा के दुलारे 
तुम्हारी सादगी , तुम्हारा भोला मुखड़ा ,
यादों से सँभाला न जायेगा 
तुम जहाँ भी रहो , महफूज़ रहो 
परम-पिता की गोदी में तुम्हें सौंप कर 
छलकती आँखों ने तुम्हें विदाई दी है , विदाई दी है।