गुरुवार, 29 नवंबर 2012

थोड़ा पुचकारा है

इक झन्नाटेदार थप्पड़ कुदरत ने 
हमें धीरे से मारा है 
टूट कर बिखर न जाएँ कहीं , थोड़ा पुचकारा है 

ज़िन्दगी की न्यामतें दे कर सभी 
चुपके से हाथ खींच लिया 
मेहरबानियों के हाथ में दारोमदार सारा है 

ज़िन्दगी जुए सी तो नहीं 
बिछी हुई है बाजी 
अरमानों ने हमें हारा है 

दूर आसमान से भरता है कोई रौशनी 
ज़मीन के इन तारों में 
मनाता है कोई जश्न और सजाता है कोई तन्हाई , बेचारा है 

रविवार, 18 नवंबर 2012

पूनम सी कोई करामात



आज दीवाली है 
बहुत चाहा कि तुम्हारा दरवाजा खटखटा कर कहूँ कि 
' शुभ दीपावली ' 
मगर बस सोच सोच कर रह गई 
कितनी ही बार बस मैनें ही तुम्हें बुलाया 
आ जाओ शाम को चाय पर 
कभी कहा , मिलने आ जाओ मन कर रहा है 
कभी ये भी कहा कि तुम आती हो 
तो मुझे बहुत अच्छा लगता है 
इकतरफा यत्नों से 
साँस फूलने लगती है ज़िन्दगी की 
दम घुटने लगता है अपने पन का 
बड़ी मुश्किल से राहें साथ चलतीं हैं 
मेहरबान होती है किस्मत भी , अपनी मेहरबानी से 
दिल के दरवाजे पर खटखटा रहा है कोई 
अमावस की अँधेरी रात में एक दीप जलाओ 
किरणों की चकाचौंध में 
शायद पूनम सी कोई करामात हो 
' शुभ दीपावली ' 
' शुभ दीपावली '