शनिवार, 30 अप्रैल 2016

नन्हीं सी गिलासी



तेरे बचपन की गिलासी 
माँ ने पिलाया होगा पानी ,
और दी होगी ममता की घुट्टी 

है ये तेरे बचपन की साथी ,
मूक गवाही नन्हीं हथेलियों की 
वाकिफ़ है ये उन हथेलियों की कंपकंपाहट से भी 
छुटते-छुटते भी सँभालने की कोशिश से भी 

एक-एक कर छूट गये पलने भी और बचपन भी 
ममता ने बिछाये होंगे फूल , और बुने होंगे सपने भी 
आँख का तारा कहने वाले खुद आसमान के तारे बन बैठे 
ये निशानियाँ भी ले आती हैं सारी यादें 

फूल खिला कर बैठे हैं हम , दीप जला कर बैठे हैं 
बचपन की सोहबत में हम , आज फिर आकर बैठे हैं 
नन्हीं सी गिलासी ने पानी पिलाया आज फिर ,
यादों का घूँट-घूँट भर 

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

परवरिश की फसल लहलहाई है


सत्ताइस साल पहले दुनिया छोड़ गईं दीदी की नातिन ने जो सैनफ्रांसिस्को में रह रही है , जब ये फैसला लिया कि  वो अपने नाम के  बीच में दीदी का नाम जोड़ लेगी ...... आँखें भी नम हो उट्ठीं  ......

एक बार फिर मैं जी उट्ठी हूँ 
तेरे नाम के अक्षरों में झिलमिला रही हूँ मैं 
ज़माने ने मुझे भुला ही देना था 
मेरे नाम को अपने नाम में जगह देना , हाँ ये आसान नहीं है 
हर बार तेरे नाम के साथ-साथ पुकारी जा रही हूँ मैं 

कोई धागा है प्रेम का 
कोई दीप है जो जल रहा है 
नाज़ों से पाला था जिन्हें , उसी परवरिश की फसल लहलहाई है 
कि हैरान हो रही हूँ मैं 

मेरे बच्चों , ये बाग खिला ही रहे 
तुम ज़माने को बदलने का दम भी रखते हो 
महकने लगी है फ़िजां 
कानों में घुल गई है मिठास 
मैं ही मैं तो हूँ , गुनगुना रही हूँ मैं 
तुम्हारी आँख की नमी में आज भी मुस्कुरा रही हूँ मैं 
तुम्हारे साथ-साथ चल रही हूँ मैं