बुधवार, 18 अप्रैल 2012

ज़िन्दगी का निशाँ

 ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो 
के तन्हा सफ़र कटता नहीं  


दम घुटता है के
 साहिल का पता मिलता नहीं  


जगमगाते हुए इश्क के मन्जर 
रूह को ऐसा भी घर मिलता नहीं 
 

तुम जो आओ तो गुजर हो जाए 
मेरे घर में मेरा पता मिलता नहीं 
 

लू है या सर्द तन्हाई है
एक पत्ता भी कहीं हिलता नहीं 


ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो 
बुझे दिल में चराग जलता नहीं  


तुम्हीं तो छोड़ गई हो यहाँ मुझको 
ज़िन्दगी का निशाँ मिलता नहीं  

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

सब है अकारथ ...

रिश्ते स्वारथ नाते स्वारथ  
आदमी की है इबारत स्वारथ  
इधर समँदर उधर समँदर 
मँजिल का है पता नदारद   
पानी पानी हर दिल है 
अरमाँ की है जमीं नदारद  
फानी है ये सारी दुनिया 
फिर भी इन्सां का मूल स्वारथ  
बैरागी मन जान गया 
अटका क्यूँ और झटका क्यूँ  
पल में दुनिया बदल जाती है 
फिर भी भटकन , स्वारथ स्वारथ  
सब है अकारथ ...