रिश्ते स्वारथ नाते स्वारथ
आदमी की है इबारत स्वारथ
इधर समँदर उधर समँदर
मँजिल का है पता नदारद
पानी पानी हर दिल है
अरमाँ की है जमीं नदारद
फानी है ये सारी दुनिया
फिर भी इन्सां का मूल स्वारथ
बैरागी मन जान गया
अटका क्यूँ और झटका क्यूँ
पल में दुनिया बदल जाती है
फिर भी भटकन , स्वारथ स्वारथ
सब है अकारथ ...
आदमी की है इबारत स्वारथ
इधर समँदर उधर समँदर
मँजिल का है पता नदारद
पानी पानी हर दिल है
अरमाँ की है जमीं नदारद
फानी है ये सारी दुनिया
फिर भी इन्सां का मूल स्वारथ
बैरागी मन जान गया
अटका क्यूँ और झटका क्यूँ
पल में दुनिया बदल जाती है
फिर भी भटकन , स्वारथ स्वारथ
सब है अकारथ ...
एक दिन मर जाना है पर फिर भी चिंता रहती है ... अकारथ है नहीं समज्ख नहीं आता ...
जवाब देंहटाएंकभी कभी रिश्ते नातों की निःसारता का अहसास कलम उठाने को मजबूर कर देता है .नासवा जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद ..
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