गुरुवार, 26 सितंबर 2013

सोहनी के हिस्से में अक्सर

ज़िन्दगी की उलझनें सुलझाते-सुलझाते धरा की न जाने कौन सी बात अम्बर को चुभ गई ...सीने की सारी नमी खत्म हो गई ...

माथे की लकीरें बोलें न 
किस्मत के भेद वो खोलें न 

तपती धरती और दरारें 
रूखा सीना अम्बर का 
आँख पनीली, प्यास है गहरी 
टूटा दिल है धरती का 

छोड़ आये हैं साहिल को 
और लौटना नामुमकिन 
कश्ती है बीच समन्दर में 
और तैरना नामुमकिन 

इन आती-जाती साँसों का 
कोई तो मोल हुआ होता 
माटी का दोष नहीं है 
सोहनी के हिस्से में अक्सर 
बीच भँवर विस्फोट हुआ 

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

और तुम उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं

ज़िन्दगी किस कदर ख़ूबसूरत मैंने तुम्हें देखना चाहा
मुट्ठी से हर बार फिसल जाती हो
और उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं
ये किस मोड़ पे ले आती हो मुझे

धीमी आँच पर हाँडी में पका सालन बहुत बिकता है 
सोंधी मिट्टी की महक सब को भाती है 
कहाँ तो पत्ते के खड़कने से भी डर जाता है दिल 
जँगल में चहल-कदमी करता हुआ 
किस बिना पे कोई जीता है 

ज़िन्दगी पी तो लूँ तुम्हें 
तुम मुझे मिटाने पे आमादा हो  
और उम्र के इस जश्न में रोना भी मना है 
फिर तुम उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं 

मेरे हिस्से की धूप से धूमिल पड़ गये हैं रँग तुम्हारे 
विष्वास की कूची से सहला रही हूँ मैं 
यूँ दिन-रात जिए जा रही हूँ मैं 
और तुम उफ़्फ़ भी नहीं करने देतीं