सोमवार, 19 दिसंबर 2016

तुम्हारे जाने के अहसास

चलो तुम्हारे जाने के अहसास को अभी ही जी लेते हैं 
थोड़ा गम पी लेते हैं 
ताकि तुम्हारे जाने के वक़्त आँख में आँसू न हो 

तुम्हारी बाइसिकिल जो तुम घर आ कर चलाया करतीं थीं 
पूछ रही है कि अब आगे इन्तिज़ार कितना लम्बा होगा 
कितनी ही चीजें जो तुम खरीद कर लाईं थीं 
बोलती हुईं सी लगतीं हैं 
कैसे इन्हें अनदेखा करूँ 
मेरी पसन्द को ध्यान में रख कर तुम्हारे लाये हुए फूल,फ्लावर पॉट्स , लैम्प्स 
सब झक्क से रौशन हो उठते हैं 
तुम्हारी चाहत के फूल खिल उठते हैं 

आओ के गले लग जायें 
ये जादू की झप्पी तुम्हें महफूज़ रक्खे उम्र भर 
माँ का आँगन बच्चों की उड़ानों के लिए हमेशा छोटा पड़ जाता है 
जाओ तुम जरा घूम के आओ 
पँख फैलाओ के आसमान तुम्हारे इन्तिज़ार में है