रविवार, 20 अप्रैल 2014

किसी ऐतबार की तरह

ज़िन्दगी कोई पकी-पकाई थाली तो नहीं 
जो परस दी गई हो तेरे आगे 
और तू कहे कि ,लज्जत-दार है ,
है ज़न्नत मेरे आगे 

ज़िन्दगी लाख मेरे क़दमों का दम देखती हो 
चलती कुछ भी नहीं है , मेरी उसके आगे 

सितम-गर कहूँ या कहूँ मेहरबाँ 
वक्त ने कितने चेहरे दिखाये हमें 
लोग बदल लेते हैं पैंतरे 
वक्त हर बार बचा लाये हमें 

वक्त और ज़िन्दगी गढ़ते हैं ,
किसी सुनार की तरह 
कभी देते हैं थपकियाँ , किसी कुम्हार की तरह 
सँभाले रखते हैं , किसी ऐतबार की तरह 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

सेर और सव्वा बने

फ़कत दुनिया की सैर करने को 
आदम और हव्वा बने 

रोज पीता है ग़मों की शराब 
अद्धा और पव्वा बने 

आदमी आदमी को सहता नहीं 
सेर और सव्वा बने 

चुप रहना आये किसे क्यूँकर 
कोयल और कव्वा बने 

ज़िन्दगी दुआ ही दुआ समझो 
मर्ज़ और दव्वा बने 

दोनों तरफ से सिंकतीं हैं रोटियाँ  
आग और तव्वा बने 

भरा हो पेट तो पकवान की याद आती है 
मीठा और रव्वा बने