ज़िन्दगी कोई पकी-पकाई थाली तो नहीं
जो परस दी गई हो तेरे आगे
और तू कहे कि ,लज्जत-दार है ,
है ज़न्नत मेरे आगे
ज़िन्दगी लाख मेरे क़दमों का दम देखती हो
चलती कुछ भी नहीं है , मेरी उसके आगे
सितम-गर कहूँ या कहूँ मेहरबाँ
वक्त ने कितने चेहरे दिखाये हमें
लोग बदल लेते हैं पैंतरे
वक्त हर बार बचा लाये हमें
वक्त और ज़िन्दगी गढ़ते हैं ,
किसी सुनार की तरह
कभी देते हैं थपकियाँ , किसी कुम्हार की तरह
सँभाले रखते हैं , किसी ऐतबार की तरह
जो परस दी गई हो तेरे आगे
और तू कहे कि ,लज्जत-दार है ,
है ज़न्नत मेरे आगे
ज़िन्दगी लाख मेरे क़दमों का दम देखती हो
चलती कुछ भी नहीं है , मेरी उसके आगे
सितम-गर कहूँ या कहूँ मेहरबाँ
वक्त ने कितने चेहरे दिखाये हमें
लोग बदल लेते हैं पैंतरे
वक्त हर बार बचा लाये हमें
वक्त और ज़िन्दगी गढ़ते हैं ,
किसी सुनार की तरह
कभी देते हैं थपकियाँ , किसी कुम्हार की तरह
सँभाले रखते हैं , किसी ऐतबार की तरह
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