शनिवार, 6 अगस्त 2016

मेरे फूल खिले हैं कहीं न कहीं

आजकल मैं तुम्हारे आने की तैयारियों में जी लेती हूँ 
तुम्हें ये पसन्द  है , तुम्हें वो अच्छा लगता है 
इन्हीं ख्यालों में रह-रह के मुस्कुरा लेती हूँ 
कहीं ये मेरे जीने का शगल तो नहीं 
कुछ भी हो , है हसीन ये बहाना भी बहुत 
तुम आओ तो मुमकिन है इतनी फुरसत न मिले 
आजकल तुम्हारे चेहरे मुझसे अक्सर बतिया लेते हैं 
मेरे फूल खिले हैं कहीं न कहीं 
दिल की क्यारी यूँ चहकने लगती है 
दर-ओ-दीवार महकने लगते हैं 
ज़िन्दगी एक तरन्नुम सी बजने लगती है 
वो रौनक जो तुम्हारे साथ आयेगी , 
मेरे ख्यालों की उँगली पकड़े मुझसे लिपटने लगती है