सोमवार, 23 जून 2014

ऑपरेशन टेबल पर मरीज़ की मनः स्थिति

ऑपरेशन की तैय्यारी में जुटे लोग 
ऑपरेशन टेबल पर लेटा हुआ मरीज़ 
बकरा हलाल होने को तैय्यार 
दिल उछल-उछल कर बाहर निकलने को है 
सिरिंज घोंप दी गई है 
पैर बाँध दिये गये हैं 
जिये जाते थे क्या इसी दिन के लिये 
अब कोई सूरत नहीं है बचने की 
भाग जाये तो बचकाना-पन है 
मशीनी से अन्दाज़ में सब कुछ हो रहा है 
वो आपस में चुहल-बाजी कर , माहौल को हल्का बना रहे हैं 
तनाव में नीरसता आती है 
अब रोज का काम है यह 
तकलीफ को हर लेंगे यही लोग , समझा रहा है खुद को  
बातों में उलझा रहे हैं वो लोग 
धीरे-धीरे विलुप्त होती हुई चेतना 

काम हो जाने के बाद 
मक्खियाँ भिनभिनाती हुई सी चेतना लौट रही है 
बँधे हुए हैं सूली पर जैसे 
इधर कैथेडर लगा है                                
ड्रेन लगा है , आक्सीजन लगी है 
हिलने-डुलने लायक भी न बचे हैं 
फिर एकाएक ये ख्याल आता है 
अरे , ऑपरेशन सफलता-पूर्वक कर लिया गया है     
अब तकलीफ सिर्फ रिकवरी की है 
दिल ख़ुशी से उछल रहा है 
और मास्क पहने डॉक्टर उसे ख़ुदा लगने लगता है 
और वो सबसे खूब सारी बातें करना चाहता है 
जैसे उसने कोई किला फतह कर लिया हो