सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

ढूँढना पड़ता है

राह चलते यूँ ही नहीं मिल जाता है मकसद 
ढूँढना पड़ता है अपनी धड़कनों का भी सबब 

किस राह से आये सुकूँ , किस रास्ते आये बिखराव 
टूट के बिखरे तो साथ आये जुड़ने का भी सबक 

चढ़ के उतरे पारा तो भूल जाता है सारा ताप 
ऊँचाई पर चढ़ना ही हो गया निढाल पड़ने का सबब 

अकड़ के टूटेगा तो टुकड़ों में नजर आयेगा  
नर्मी से झुकना ही है साबुत बच पाने का सबक 

नहीं जाता बेकार भटकना ये देखना 
सहरा का कोई किनारा तो बनेगा उबार लेने का सबब 

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

दिन ढले रोज सुबह के ख्वाब

वक्त मरहम है तो सताता क्यूँ है 
भूली बिसरी यादों की याद दिलाता क्यूँ है 

वक्त गुज़रा अच्छा भी बुरा भी 
फिर ये सानिहा सा रातों को जगाता क्यूँ है 

साजे-ग़ज़ल है ग़र जीवन तो 
बेसुरी तान सुना दिन रात रुलाता क्यूँ है 

इन्सां मिट्टी का खिलौना है तो रोता क्यूँ है 
दिन ढले रोज सुबह के ख्वाब सँजोता क्यूँ है 

शबे-ग़म गर हवा है तो ठहर जाता क्यूँ है 
किसी सीने में कहर ढाता क्यूँ है 


हजार बातें हैं कहने को , सुनेगा कौन 
जिगर में शोर लिए हर बार , मुस्कराता क्यूँ है 

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

कोई नहीं झाँकता

मैंने वो अजनबीयत तुम्हारी आँखों मे
 बहुत पहले ही देख ली थी
कोई रोके खड़ा है
कोई रो के खड़ा है
महज़ शब्दों का हेर फेर नहीं ये
सैलाब की रवानी है ये
हालात ने काबू किया मुझ पर 
उस किनारे थे तुम
वक्त की बेरहम हँसी देखी मैंने
वक्त रुकता नहीं कभी किसी के लिए
तेरी आँखों की वो बेरुखी , मेरे दिल में 
खिजाँ बन कर ठहर गई शायद 
बहुत चाहा कि समझ लूँ इसे आँखों का भरम 
तेरे चेहरे पर मगर , वो पहचान नहीं उभरी 
मजबूरियाँ तन्हाईयों की शक्ल में हमें जीने नहीं देतीं 
यादें कसैली सी हो आई हैं 
अब कोई नहीं झाँकता उन आँखों के दरीचों से 
जहाँ कोई मेरा हमनवाँ भी हो सकता था   


मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

तेरी धरोहर

हड्डी हड्डी टूट जुड़े 
इन्सां का हौसला परवान चढ़े 
दूर खुदा बैठा ये सोचे 
किसके नाम का मन्तर ये 
मेरे जैसा काम करे 

सुख अपनी गलियों में राजी 
दुःख को कौन सिर माथे धरे 
एक ही सिक्के के दो पहलू  
भाव दिया जिसको भी तूने 
हर दिन दूनी बात बढ़े 

घर की सफाई जितनी कर ले 
जग वाले ईनाम न देंगे 
मन की सफाई तेरी कमाई 
दुःख सुख दोनों ढल जायेंगे 
तेरी धरोहर साथ चले