बुधवार, 25 जनवरी 2012

मेरे देश की शान तिरँगा

छब्बीस जनवरी के उपलक्ष्य में ....
मेरे देश की शान तिरँगा
मेरे देश की आन तिरँगा
सौहाद्र ,एकता , भाईचारा
मेरे देश का मान तिरँगा

केसरिया बाना ताने
उतरी है धूप दिलों में
रँग हरा खुशहाली का
शान्ति दूत सा झण्डा

मुस्तैद जवान है सीमा पर
खेतों में किसान है चौकस
रहट सा चलता चक्र
अन्तस में प्रेम की गँगा

ऋषि-मुनियों की धरती पर
सत्य अहिँसा नारा
जन जन की आवाज़ में गूँजे
देश प्रेम की धारा

लिपट शहीदों से इतराता
मेरे देश की शान तिरँगा
रोष ,जोश और होश खोते
मेरे देश की आन तिरँगा

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

नैनीताल की बर्फ़बारी





रुई के फाहे से गिर रहे हैं चारों तरफ
मेरे अल्लाह जन्नत सा नज़ारा है

ये कौन सी दुनिया है जहाँ में
कुदरत का इतना हसीन फव्वारा है

बरसतीं हैं नेहमतें उसकी झोली से
आज फिर इक बार उसने हमें पुकारा है

पेड़ों की डालियों पे , तारों पे , छतों पे
मुण्डेरों पे चाँदनी ने पाँव पसारा है

देख लो , देख लो फिर इक बार जी भर के
बर्फ ने सारा शहर उजला सा निखारा है

चाय की प्याली सुड़कते हुए हम लोग
ठिठुरती सी गलन , जोश ने फिर भी जोश मारा है

बजने लगा है सँगीत चारो तरफ
या खुदा ये नज़र है या नज्जारा है