सोने दे मुझे शब भर को
कितनी है कीमत अपनों की
आराम की कीमत कितनी है
आँसू न कर पाये कीमत
उधड़ा है जिगर
सिलाई की कीमत कितनी है
सब्र कितने वक्त का , ये बता
ये सफर है या मुकाम
आड़े वक्त के साथी ,
क्या यही है मेरा ईनाम
सोने दे मुझे शब भर को
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अपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा भाव!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोभाव की कविता
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना...बधाई..
जवाब देंहटाएंनीरज