गुरुवार, 26 मार्च 2015

पलकों पे है जो ठहरा

वाट्स एप पर ग्रुप बना कर कॉलेज के वक्त के साथियों से मिलाने का काम किया एक मित्र ने , चालीस साल का लम्बा अन्तराल ...अब चेहरों को पहचानने की कशम-कश जारी है ...

हम वैसे ही न मिलेंगे ,
जैसे जुदा हुये थे 

बरसों के फासले हैं ,
उम्र का भी है तकाज़ा 

जादू सा किसने फेरा ,
बदलीं हैं सारी शक्लें 

झाँकेगा वही चेहरा ,
पलकों पे है जो ठहरा 

वक़्त की है ये आँख-मिचोली ,
पलटे हैं पन्ने यादों ने 

दो कदम चले थे साथ ,
राहें बदल गईं थीं 

ख़्वाबों का कारवाँ भी ,
हमें ले के गया किधर 

बचपन की तरह छूटा ,
दौड़ा रगों में लेकिन 

छेड़ा है हवाओं ने ,
फिर से वही फ़साना 

किस चेहरे को किस से जोडूँ ,
यादों का मुँह मैं मोडूँ 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ४० साल बाद अचानक कोई मिले तो सच पहचानना मुश्किल होगा लेकिन जाने कितनी ही यादों में हम गोते लगते रहेंगे पता नहीं ..रोमांचकारी पल होंगे ..
    चलिए कुछ तो अच्छा हुआ ...

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