तीन
बादलों से ढका हो आसमान तो भी
उजाले की कोई किरणधरती तक पहुँचती तो है
कृपण नहीं मेरा सूरज
उसकी कोशिश झलकती तो है
दूर ,तेरे होने का अहसास ही बहुत है
दूर ,तेरे चलने का आभास ही बहुत है
मैनें अभी किरणों को गिनना नहीं छोड़ा
चार
इश्क की आग से सबेरा कर लेना
ये सूरज सी आब रखता हैइसकी तपिश से है दुनिया का चलन
इस पर भरोसा कर लेना
ख्वाब सी है जमीन ,ख्वाब सा है आसमान
रेशमी से ख्वाब बुन लेना
चलना वैसे भी है,चाहत का मोड़ देकर
इक हंसींन मंजर देना
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