सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

ब्लॉगर साथियों के लिए

ये कलम वाले....
१. 
ऐ बुत तराश ,
जोशे-जुनूँ ,शबे-गम
मिलाया है किस हिसाब से
दामन तार तार कर लेते हैं ये
दूर कहीं गुलाब खिलने की चाह से
जोशे-जुनूँ एक सा,रंजो-गम एक सा
इसीलिये है रंजो-गम की जुबां एक सी

२.
इसे लग गयी है बू
कागज़ पे उतर आने की
घुट के जीना इसे अब रास नहीं आता
ये सनक अब संभाली न जायेगी
पानी को बाँध पाना नादानी है ,
किनारे तोड़ कर बह जाता है ये,
सैलाब की बस यही निशानी है


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