शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

कवितायें

एक

हर लम्हा रात का आखिरी लम्हा होगा
सूरज दस्तक देगा मेरे दरवाजे पर
पहली किरण दस्तक देगी मेरे दरवाजे पर
मैनें अपनी ड्योढी पूरब की ओर बना रक्खी है
सारी किरणें अपनी चुनरी में भर लूंगी
बेशक मेरी चुनरी तार तार हो
चुनरी फ़िर चुनरी है
बूढी हो चली आंखों में सितारे भर लूंगी
हर लम्हा रात का आखिरी लम्हा होगा


दो

क्या हुआ ,जो इम्तिहान अभी और भी हैं
क्या हुआ ,जो राहें हैं पथरीली
सब्रो -पैमाना अभी नहीं छलका
कड़वे घूंटों को हलक से उतारना अभी नहीं खटका
तेरी राहों के मंजर देखने की हसरत अभी बाकी है
तेरी किताब के वरकों में ,कुछ नया देखने की ललक
अभी बाकी है

3 टिप्‍पणियां:

  1. bahut prabhavshali abhivyakti hai aapki-

    सारी किरणें अपनी चुनरी में भर लूंगी
    बेशक मेरी चुनरी तार तार हो
    चुनरी फ़िर चुनरी है
    बूढी हो चली आंखों में सितारे भर लूंगी

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  2. बूढी हो चली आंखों में सितारे भर लूंगी
    हर लम्हा रात का आखिरी लम्हा होगा


    --बहुत सुन्दर रचनाऐं.

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  3. आपकी दूसरी कविता बहुत अच्छी लगी


    वीनस केसरी

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