केवल सिर काटने से रावण नहीं मरेगा , उसे मारना है , तो उसकी नाभि में तीर मारिये | समस्यायें ख़त्म करनी हैं तो सिर्फ़ लक्षणों का उपचार करने से काम नहीं चलेगा , बीमारी की जड़ को ही मिटाना होगा | ये कहना है शिव खेड़ा , इंटरनॅशनल मोटिवेटर का | सवाल ये उठता है आंतकवाद पैदा कहाँ हुआ , मस्तिष्क में या धड़ में | इंसान भावना प्रधान जिन्दगी जीता है , यानि दिल ही दिमाग पर राज करता है ; तो मेरी नजर में दिल का बदलाव आवश्यक है | ये काम लेखक लोग बखूबी कर सकते हैं |
आंतकवाद की रोकथाम कैसे हो
ये मिलेगा जहाँ ये पैदा हुआ
इंसान का दिल ही तो है मिट्टी इसकी
रगों में फलता फूलता जहर इसका
दुःख , जिल्लत की जिन्दगी से उपजा है जो
ग़लत दिशाओं को पनपा है ये
इलाज इसका नहीं दवाओं में
राहत होगी टूटे दिल की दुआओं में
जो लुटायेगा वही पलट के आयेगा
कुदरत के नियम कौन बदल पायेगा
खुशी देने से खुशी मिलती है
उसके लबों को मुस्कान देकर
तेरे गम हवा हो जायेंगे
मिसाल बनना ही है तो
जीवन दाता की बन
जिन्दगी से बढ़ कर न्यामत नहीं है
मुस्कानों से बढ़ कर इबादत नहीं है
इबादत कभी बगावत नहीं होती
इक लम्हा लगता है राह चुनने में
चुन सकता है सुंदर जिन्दगी की राहें
मजबूरी ,बेचारगी का रोना न रो
यही वक़्त है ग़मों की साजिश को पहचानने का
भारी रूहों से इबादत नहीं होती
कितने आँसू , कितना लहू
कीमत है तेरी
पेट न लहू से न नोटों से भरता है
ये भरता है सब्र की मुस्कानों से
ये तुझ पर है कि फूल बन खिल रेगिस्तानों में
और पोंछ ले आँसू
इन्सानों के इम्तिहानों में
कुछ ऐसी ही पोस्ट इसी ब्लॉग पर उपलब्ध है
१ इंसानी से जज्बों के संग
२ सड़कों पर बिखरा है लहू
३ मानवता खून के आँसू रोती है
आंतकवाद की रोकथाम कैसे हो
ये मिलेगा जहाँ ये पैदा हुआ
इंसान का दिल ही तो है मिट्टी इसकी
रगों में फलता फूलता जहर इसका
दुःख , जिल्लत की जिन्दगी से उपजा है जो
ग़लत दिशाओं को पनपा है ये
इलाज इसका नहीं दवाओं में
राहत होगी टूटे दिल की दुआओं में
जो लुटायेगा वही पलट के आयेगा
कुदरत के नियम कौन बदल पायेगा
खुशी देने से खुशी मिलती है
उसके लबों को मुस्कान देकर
तेरे गम हवा हो जायेंगे
मिसाल बनना ही है तो
जीवन दाता की बन
जिन्दगी से बढ़ कर न्यामत नहीं है
मुस्कानों से बढ़ कर इबादत नहीं है
इबादत कभी बगावत नहीं होती
इक लम्हा लगता है राह चुनने में
चुन सकता है सुंदर जिन्दगी की राहें
मजबूरी ,बेचारगी का रोना न रो
यही वक़्त है ग़मों की साजिश को पहचानने का
भारी रूहों से इबादत नहीं होती
कितने आँसू , कितना लहू
कीमत है तेरी
पेट न लहू से न नोटों से भरता है
ये भरता है सब्र की मुस्कानों से
ये तुझ पर है कि फूल बन खिल रेगिस्तानों में
और पोंछ ले आँसू
इन्सानों के इम्तिहानों में
कुछ ऐसी ही पोस्ट इसी ब्लॉग पर उपलब्ध है
१ इंसानी से जज्बों के संग
२ सड़कों पर बिखरा है लहू
३ मानवता खून के आँसू रोती है
विचारणीय पोस्ट. सही है पहले मानसिकता बदलना होगी.
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