बीता अन्दर है , लिखा बाहर होता है
बोझ मन पर होता है , छपा चेहरे पर होता है
चेहरा आईना हुआ मन का , लिख ले वही बात जो दिखाना तुझको
मजबूरी , बेचारगी , सदियों से वही बहाना मन का
लकीर-दर-लकीर मन पर उभर आयेगी
पाटने को कोई मिट्टी न नजर आयेगी
दो-चार कदम हल्के हो कर चल लो
ख़ुद ही पकड़ लोगे पल्लू , फ़िर कोई बनावट संभाली न जायेगी
मजबूरी , बेचारगी , सदियों से वही बहाना मन का
जवाब देंहटाएंलकीर-दर-लकीर मन पर उभर आयेगी
पाटने को कोई मिट्टी न नजर आयेगी
दो-चार कदम हल्के हो कर चल लो
bahut sahi kaha ji ,bahut khub pasand aayi rachana badhai.
Waah ! Waah ! Waah !
जवाब देंहटाएंbahut sundar.......