क्यों खाए बैठा है मलाल
क्यों भूले बैठा है गुलाल
गुलाल ही पी, गुलाल ही जी
किस किस का रखेगा हिसाब
खोल तू अपने पँखों की किताब
कितनो को ढक सकते हैं ये
कितना फासला तय कर सकते हैं ये
हिम्मत का डग भरती उड़ान
नस नस में रँग भरती उड़ान
कितनी ऊँचाई तय कर सकती उड़ान
गुलाल ही पी , गुलाल ही जी
क्यों भूले बैठा है गुलाल
गुलाल ही पी, गुलाल ही जी
किस किस का रखेगा हिसाब
खोल तू अपने पँखों की किताब
कितनो को ढक सकते हैं ये
कितना फासला तय कर सकते हैं ये
हिम्मत का डग भरती उड़ान
नस नस में रँग भरती उड़ान
कितनी ऊँचाई तय कर सकती उड़ान
गुलाल ही पी , गुलाल ही जी
क्या बात है....लाजवाब रचना...जिंदगी जीना सिखाती हुई...
जवाब देंहटाएंनीरज
sach mein bahut sundar
जवाब देंहटाएंहिम्मत का डग भरती उड़ान
जवाब देंहटाएंनस नस में रँग भरती उड़ान
कितनी ऊँचाई तय कर सकती उड़ान
गुलाल ही पी , गुलाल ही जी
ati sundar....nice thoughts....regards
बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छा िलखा है आपने । नए साल में यह सफर और तेज होगा, एेसी उम्मीद है ।
जवाब देंहटाएंनए साल का हर पल लेकर आए नई खुशियां । आंखों में बसे सारे सपने पूरे हों । सूरज की िकरणों की तरह फैले आपकी यश कीितॆ । नए साल की हािदॆक शुभकामनाएं-
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