लोग पहचानते हैं सिर्फ़ कद को
चाहे वो ठूँठ ही हो , छाया का दम भरते हैं
आंखों पर चश्में चढा , जग को देखा करते हैं
आदमी आदमी न रहा , हवा को देखा करते हैं
अपने ही मूल्यों को , क्यों कर ये नकारा करते हैं
वो हरियाली , जो मनों से मिला करती है
नजर अंदाज़ की , जिससे फूल खिला करते हैं
कहने को वक़्त के साथ साथ चला करते हैं
क़द परछाईं हो जैसे , दिन रात साथ चला करते हैं
क़द घुल जाता है तो ,खुशबू को भी प्यार आता है
हरियाली छा जाती , ठूंठों पे भी बौर आता है
चाहे वो ठूँठ ही हो , छाया का दम भरते हैं
आंखों पर चश्में चढा , जग को देखा करते हैं
आदमी आदमी न रहा , हवा को देखा करते हैं
अपने ही मूल्यों को , क्यों कर ये नकारा करते हैं
वो हरियाली , जो मनों से मिला करती है
नजर अंदाज़ की , जिससे फूल खिला करते हैं
कहने को वक़्त के साथ साथ चला करते हैं
क़द परछाईं हो जैसे , दिन रात साथ चला करते हैं
क़द घुल जाता है तो ,खुशबू को भी प्यार आता है
हरियाली छा जाती , ठूंठों पे भी बौर आता है
bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत निराला अंदाज़ है आपके लेखन का...बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंलोग पहचानते हैं सिर्फ़ कद को
जवाब देंहटाएंचाहे वो ठूँठ ही हो , छाया का दम भरते हैं
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आप ने, लेकिन मेने महसुस किया है की कई बार इस ठूँठ का भी बहुत सहारा होता है परिवार को बांधे रखने के लिये.
धन्यवाद