गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

सुनहरी किरणों के मालिक

सुनहरी किरणों के मालिक
उतरो , तुम उतरो

सुबहों की उजली रूहों में उतरो
इन्सां की खिलखिलाती हसरतों में उतरो
दुआओं को उठते हाथों में उतरो
प्रेम की सारी परिभाषाओं में उतरो

सुनहरी किरणों के मालिक
उतरो , तुम उतरो

सजदे को उठती निगाहों में उतरो
वफ़ा के सारे रंगों में उतरो
विश्वास के आँगन में उतरो
स्वाति नक्षत्र की एक बूँद को ,
तरसते हमारे दिलों में उतरो

सुनहरी किरणों के मालिक
उतरो , तुम उतरो

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत खूब हिसाब- किताब रखने वाले इतना अच्छा लिखते हैं अविश्वसनीय

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  2. िजंदगी को आपने बडे मामिॆक तरीके से शब्दबद्ध किया है । अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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