कटी शाखों के निशानों को , रोज रोज देखा नहीं जाता
टपकने लगता है लहू , जख्मों को कुरेदा नहीं जाता
मेरे महबूब के हाथों में कोई खंजर तो नहीं
उसके जख्मों से भी रिसता है लहू , कोई पानी तो नहीं
कैसी हलचल है मेरे घर में , वीरानी तो नहीं
कैसे जानूं जिन्दगी , मैं तेरी दीवानी तो नहीं
वही दुनिया है , खूबसूरती का सामान नज़र आती है
वही दुनिया है कि मौत का आगोश नज़र आती है
कैसे पकडूँ कि हर चीज़ फ़ना होती है
अपने अन्दर ही खामोशी की जुबान होती है
अपनी दुनिया में खुशी मेहमान बन के आती है
उनींदी आंखों में कोई ख्वाब बन के आती है
घूँट घूँट पी लो तो जिन्दगी नशा होती है
छूटे जो हाथ से ,टुकडों टुकडों में बंटी होती है
या खुदा , ये कैसी बेकसी है के
मन के हालात ही नजारों में नज़र आते हैं
टपकने लगता है लहू , जख्मों को कुरेदा नहीं जाता
मेरे महबूब के हाथों में कोई खंजर तो नहीं
उसके जख्मों से भी रिसता है लहू , कोई पानी तो नहीं
कैसी हलचल है मेरे घर में , वीरानी तो नहीं
कैसे जानूं जिन्दगी , मैं तेरी दीवानी तो नहीं
वही दुनिया है , खूबसूरती का सामान नज़र आती है
वही दुनिया है कि मौत का आगोश नज़र आती है
कैसे पकडूँ कि हर चीज़ फ़ना होती है
अपने अन्दर ही खामोशी की जुबान होती है
अपनी दुनिया में खुशी मेहमान बन के आती है
उनींदी आंखों में कोई ख्वाब बन के आती है
घूँट घूँट पी लो तो जिन्दगी नशा होती है
छूटे जो हाथ से ,टुकडों टुकडों में बंटी होती है
या खुदा , ये कैसी बेकसी है के
मन के हालात ही नजारों में नज़र आते हैं
उनींदी आंखों में कोई ख्वाब बन के आती है
जवाब देंहटाएंघूँट घूँट पी लो तो जिन्दगी नशा होती है
छूटे जो हाथ से ,टुकडों टुकडों में बंटी होती है
मन के हालात ही नजारों में नज़र आते हैं,
bahut badhiya . likhati rahiye. dhanyawad.