मंगलवार, 18 नवंबर 2008

हौसलों की भीड़

आदमी ,
जब तक जीतता रहता है
हौसलों की भीड़ भी ,चलती है उसके साथ
हार जाता है ,
तो ताकता है हौसलों , गुमानों की तरफ़
ख़ुद का ही जो हिस्सा थे
उन्हीं बेगानों की तरफ़
गर एक भी हौसला बचता नहीं है उसके पास
ख़ुद से हारा तो हार जाता है आदमी
ज्यों जिंदगी हो दांव पर
ख़ुद को ही हार जाता है आदमी

3 टिप्‍पणियां:

  1. आदमी जब तक जीतता रहता है .हौसलों की भीड़ भी उसके साथ चलती है .हार जाता है तो हौसलों, गुमानों की तरफ़ ताकता है .जो ख़ुद का ही हिस्सा थे .अगर उसके पास एक भी हौसला नहीं बचता है . तो उन्हीं बेगानों की तरफ़ ताकता है . वाह वाह क्या बात है .

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  2. अच्छा लिखा है आपने । िवषय की अभिव्यक्ित प्रखर है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख महिलाओं के सपने की सच्चाई बयान करती तस्वीर लिखा है । समय हो तो उसे पढें और राय भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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आपके सुझावों , भर्त्सना और हौसला अफजाई का स्वागत है