क्यों फरिश्तों को न हम बुलाया करते
मरुस्थलों में लगा आग तपाया करते
क्यों वीरानों को न सजाया करते
रत्ती भर जो न मिला , दुःख को लम्बा करते
क्यों भरे पेट , भरे मन भी न अघाया करते
ख़ुद ही दुश्मन बने अपने , गड़े मुर्दों को साथ चलाया करते
क्यों न दिल की ढपली पे , प्रेम के रागों को अलापा करते
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