बुधवार, 19 अगस्त 2009

लगती है एक उम्र


इतने कड़वे सचों का सामना करना आसान नहीं है , वास्तविक जिन्दगी में पत्नी के सच बोलने पर नोएडा का एक पति पँखे से लटक गया और एक ने पत्नी के गले पर ब्लेड मार मार कर मारने की कोशिश की | ऐसे सच को बर्दाश्त करना इसीलिये मुश्किल हो गया है क्योंकि इन्सान अपने किए गुनाह को भी गुनाह नहीं समझता और दूसरों से हुई गल्ती को भी गुनाह का दर्जा देता है | किसी तरह भी माफ़ नहीं करता | ऐसे सच बोल कर क्या इनाम पाया ?
दिलों को न तू तोड़ना
बोल देना झूठ भी
है एक अदालत और भी
श्वासों की कद्र कर 


लगती है एक उम्र , आशिआना बनाने में
कैसे कर देगा अपने ही हाथों , तिनका तिनका बिखराने में
सच बोलना है ख़ुद से बोल
न मोल भाव कर


कुछ ऐसे सच हैं अगर
सीख ले , भूल जा वो बेडियाँ
हिल जायेंगी तेरी ईंटें
आँधियों में सँभाल कर


शाश्वत है सत्य जीवन
जिन्दा हैं इनकी रूहें
बोलना तू मीठे बोल से
निवालों को तौल कर
दिलों को न लताड़ना
जीवन की कद्र कर


{' कैसे करें सच का सामना ' भी इसी मुद्दे पर लिखी गई कविता है (इसी ब्लॉग पर )}

7 टिप्‍पणियां:

  1. Very true...spoken words can never be taken back.One needs to be very sensetive while speaking.

    Never the less,best is actually avoid doing things which fall heavy on conscience.

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  2. सच कभी-कभी जानलेवा भी हो जाता है इसका अहसास हो रहा है। रोज इन खबरों का आना तो यही बता रहा है। कविता पसन्द आयी।

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  3. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  4. बहुत सही कहा है । सुन्दर पोस्ट बधाई

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  5. वास्तव में यदि मनुष्य खुद से सच बोलना, सच को सुनना और सच को स्वीकारना सीख जाये तो ऐसी घटनाओं की परिणति नहीं होगी. संवेदनाओं को झकझोरने के लिए आभारी.

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  6. मेरा दिल है बड़ा उदास.
    आओ पापा मेरे पास
    मेरा दिल है बड़ा उदास
    मम्मी की भी याद सताती
    भैया को मैं भूल न पाती.
    तुमसे मैं कुछ न मांगूगी
    पढने मे प्रथम आउंगी
    रखो मुझको अपने पास
    मेरा दिल है बड़ा उदास.
    नहीं सहेली संग खेलूंगी
    गुडिया को भी बंद कर दूंगी
    बैठूंगी भैया के पास
    मेरा दिल है बड़ा उदास.
    जाओगे जब कल्ब मे आप
    मम्मी को ले कर के साथ
    रह लुंगी दादी के पास
    मेरा दिल है बड़ा उदास.
    नहीं चाहिए चोकलेट टाफी
    नहीं चाहिए मुझको फ्राक
    मम्मी पापा मुझे चाहिए
    मेरा दिल है बड़ा उदास.
    राजा रानी के किस्से
    भगवान की प्यारी बात
    दादी हमको रोज सुनाती
    आती मुझको उनकी याद.
    बुआ से छोटी करवाना
    चाचा के संग बाज़ार जाना
    जिद नहीं मैं कभी करुँगी
    पापा मुझको घर ले जाना.
    कहना मानूँ दूध पियूंगी
    घर की चाट पर नहीं चढूँगी
    घर ले जाओ मुझको पापा
    हॉस्टल मे मैं नहीं पढूंगी.

    अ.किर्तिवर्धन

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  7. sharda ji,yah bhi sach ka saamana hi hai ki ham apne sukh,jhuthi shaan ke liye bachpan koapne pyar se mahroom kar dete hain.

    kirtivardhan

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