बुधवार, 26 अगस्त 2009

कैसे खो दूँ मैं तुझे


एक बड़ी ही प्यारी मित्र ने कुछ ऐसा किया जो हमारे रिश्तों में कडुवाहट घोलने के लिए काफी था | ऐसे वक़्त में कुछ इन पंक्तियों से ख़ुद को समझाया.....
आँसू आ के रुक गया
आँख की कोरों पर 

कैसे नाराज हो जाऊँ
मैं तुझ से गैरों की तरह


दुःख तो होता है
तेरी बेरुखी पर


कैसे खो दूँ मैं तुझे
भीड़ में लोगों की तरह


फूल भी अपनों के मारे हुए
लगते हैं शूलों की तरह


कैसे खो दूँ मैं तुझे
राह में भूलों की तरह


तेरी यादें मुझे यूँ भी
उम्र भर सतायेंगी


कैसे खो दूँ मैं तुझे
गुजरी हुई बातों की तरह

5 टिप्‍पणियां:

  1. शारदा जी कल तो मेरी भी कुछ ऐसी ही स्थिती थी बहुत बडिया रचना है किसी अपने को खोने का दुख असह होता है कोशिश यही करनी चाहिये कि रिश्ते को किसी भी कीमत पर खोना ना पडे। बहुत सुन्दर कविता है आभार्

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  2. तेरी यादें मुझे यूँ भी
    उम्र भर सतायेंगी
    कैसे खो दूँ मैं तुझे
    गुजरी हुई बातों की तरह

    दिल की तराजू में तोल कर लिखे गये शब्दों के लिए बधाई!

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  3. मनोभाव को प्रस्तुत करती हुई सकारात्मक रचना मंत्रमुग्ध करती हुई .....आपका आभार .....

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  4. वाकई में दोस्ती होती ही ऐसी है की किसी भी शर्त पर नही खोई जाती......

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