एक मित्र के पिता के दुनिया से चले जाने के बाद , मित्र की माँ जब जब मुझे मिलीं रोईं जरुर , जैसे अतीत के गले लग आईं हों | क्या हमने कभी बुढापे की आँख से जिन्दगी को देखा है ?
जीवन के उत्तरार्ध को
जाता हुआ जीवन
साथी भी साथ छोड़ गए
निष्ठुर छल गया जीवन
काँपते हाथ और जज्बात
लाचार नहीं , आधार नहीं
मेरे हाथों में सँसार नहीं
यूँ गल गया जीवन
बोझ यादों का भी है
सीने में सुलगता दावानल
सैलाब है बहता आँखों से
है हिल गया जीवन
वो कौन सी चीज है
जो चलाती है जीवन को
डोर टूटी तो पतझड़ आ गया
निष्ठुर ढल गया जीवन
जीवन के उत्तरार्ध को
जाता हुआ जीवन
साथी भी साथ छोड़ गए
निष्ठुर छल गया जीवन
काँपते हाथ और जज्बात
लाचार नहीं , आधार नहीं
मेरे हाथों में सँसार नहीं
यूँ गल गया जीवन
बोझ यादों का भी है
सीने में सुलगता दावानल
सैलाब है बहता आँखों से
है हिल गया जीवन
वो कौन सी चीज है
जो चलाती है जीवन को
डोर टूटी तो पतझड़ आ गया
निष्ठुर ढल गया जीवन
सही कहा आपने......
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिकता से आपने यथार्थ तथा भावों को बाँधा है...बहुत ही सुन्दर रचना...