न जाने कौन सी बात पहचान बने
वो मुलाकात कल्पना की उड़ान बने
पल्लवित होती बेलें , नाजुक ही सही
बढ़-बढ़ के छूने को आसमान बने
तपन गर्मी की , बौरों से लदे
पेड़ों के फलों की मिठास का गुमान बने
चाँद सूरज हैं नहीं दूर हमसे
धरती पर रोज उतरें वरदान बनें
पीड़ा में छटपटाता है हर कोई
कौन जाने प्रेरणा रोग का निदान बने
जरुरी है खुराक इसकी भी
तन्हाईं में भी होठों पर मुस्कान बने
पीड़ा में छटपटाता है हर कोई
जवाब देंहटाएंकौन जाने प्रेरणा रोग का निदान बने
जरुरी है खुराक इसकी भी
तन्हाईं में भी होठों पर मुस्कान बने
bahut badhiyaa.
चाँद सूरज हैं नहीं दूर हमसे
जवाब देंहटाएंधरती पर रोज उतरें वरदान बनें .nice
बहुत सुन्दर ! उड़नतश्तरी जी का जवाब नहीं ! उनकी पोस्ट्स बहुतों के लिये प्रेरणा का मार्ग प्रशस्त कर देती हैं ! प्रेरणा का प्रतिफल लाजवाब है !
जवाब देंहटाएंबताईये, हम तो खुद ही आतिफ असलम की तस्वीर लिए बैठे हैं कि कहीं कुछ आत्म विश्वास बढ़े. :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है कि प्रेरणा दे पाये....वैसे आसिफ टाईप वाली प्रेरणा तो नहीं..सचमुच वाली :)
बहुत सुंदर जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी रचना .. बधाई !!
जवाब देंहटाएंपल्लवित होती बेलें , नाजुक ही सही
जवाब देंहटाएंबढ़-बढ़ के छूने को आसमान बने.....
शारदा जी, कविता का ये सकारात्मक पहलू प्रेरणा देने वाला बन गया है.
अच्छी रचना / बात रोने की लगे फिर भी हंसा जाता है /यूं भी हालात से समझौता किया जाता है |प्रेरणा रोग का निदान बने एक अनूठी बात |भलेही बेले नाजुक होती है मगर आसमान छूने का अरमान तो है
जवाब देंहटाएंKitni sahajta se aapne itni badi baat kah dee hai!
जवाब देंहटाएंपीड़ा में छटपटाता है हर कोई
जवाब देंहटाएंकौन जाने प्रेरणा रोग का निदान बने
अच्छा लिखा है