रँग प्याली में बेशुमार भर देती
ठहरे हुए पानी में
मीठी सी जल-तरँग भर देती
तपती हुई धरती पर
छिटक के चाँदनी बिखर जाती
बोझिल कदम उठते ही
पँखों की उड़ान बन जाती
सपने में देख कर सपना
खुमारी नींद की उतर जाती
गुम हो गयी थी आशना
तूलिका रँग उमँग भर जाती
कौन लिखने के लिए लिखता है
कभी किसी के लिए आसमान बन जाती
सुबह के भूले के लिए
रात होते ही , दुआ सलाम बन जाती
बहुत ही खूबसूरत ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना..........."
जवाब देंहटाएंamitraghat.blogspot.com
ठहरे हुए पानी में..मीठी सी जल-तरँग भर देती
जवाब देंहटाएंतपती हुई धरती पर..छिटक के चाँदनी बिखर जाती.
लाजवाब भाव पिरोये हैं शारदा जी...बधाई
सुबह के भूले के लिए
जवाब देंहटाएंरात होते ही , दुआ सलाम बन जाती
जबाब नही आप की इस सुंदर कविता का बहुत सुंदर भाव लिये है.
धन्यवाद