देर उतनी ही हुई है
जितनी दूरी है मेरे रूठे हुए अपनों
पलकों की मुंडेरों पर , थम गये हो
ज़रा ठहरो
कोई जागा है शब भर को
जादू की छड़ी हो तुम
सपने सब हो जाते अपने
बन्द आँखों में करवट ले लो
सच का रँग भर दो
जागी हुई रात के सोये हुए पाहुनों
देर उतनी ही हुई है
जितनी दूरी है , मेरे अँगना से
तेरे क़दमों की
बहुत सुन्दर एहसास।
जवाब देंहटाएंजितनी दूरी है मेरे रूठे हुए अपनों
जवाब देंहटाएंपलकों की मुंडेरों पर , थम गये हो
-भावपूर्ण रचना.
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
जागी हुई रात के सोये हुए सपनों....
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा है....वाह....मुबारकबाद
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं