गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

अब आगे तपस्या होगी

मैं उससे मिली थी , कभी घूमते वक़्त रास्ते में पतिदेव ने परिचय कराया था , ये हमारे बैंक में कम्पनी सेक्रेटरी हैंपरसों रात खबर मिली , ट्रेन से उतरते वक़्त ट्रैक में फँस जाने से उसकी दोनों टाँगें......लेखनी लिखने से इन्कार कर रही है , दिलासे के लिए भी शब्द नहीं हैंजीवन जैसे एक ज्ञ हो और जिन्दगी ने किसी बहुत ही जरुरी चीज की आहुति माँग ली होईश्वर तुम्हें असीम आत्मिक बल प्रदान करेंये भी तुम्हारी ही हिम्मत थी कि हादसे के बाद भी खुद ही फोन म्बर बता कर घर सूचित कर सके

अब आगे परीक्षा होगी
अब आगे तपस्या होगी
दिल को फूलों पर ही चलना भाता है
काँटों पर कैसे बसर होगी
हर मोड़ पे खाई है कब समझा है कोई
पगडंडी पर भी गुजर होगी
चोट खाता है तो रोता है दिले-नादाँ
अश्कों में कैसे बसर होगी
सैलाब में डूबे तो किनारा कोई नहीं
साहिल पर भी तेरी नजर होगी
फूल-कलियाँ-काँटे , कम-ज्यादा , झोली भर बाँटे
अपनी राहों पर भी नजर होगी
तुझको चलना है तूफाँ में रौशनी लेकर
हौसले में ये आँधी भी बेअसर होगी

3 टिप्‍पणियां:

  1. तुझको चलना है तूफाँ में रौशनी लेकर
    हौसले में ये आँधी भी बेअसर होगी
    मार्मिक घटना
    मार्मिक रचना
    मार्मिक भाव
    उफ!

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  2. ओह...बहुत ही दर्दनाक
    ऊपर वाला सबको सुरक्षित रखे

    तुझको चलना है तूफाँ में रौशनी लेकर
    हौसले में ये आँधी भी बेअसर होगी...
    आपकी पंक्तियां उमीद जगाने वाली हैं.

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