शनिवार, 10 अप्रैल 2010

देर उतनी ही हुई है

जागी हुई रात के सोये हुए सपनों
देर उतनी ही हुई है
जितनी दूरी है मेरे रूठे हुए अपनों
पलकों की मुंडेरों पर , थम गये हो
ज़रा ठहरो
कोई जागा है शब भर को
जादू की छड़ी हो तुम
सपने सब हो जाते अपने
बन्द आँखों में करवट ले लो
सच का रँग भर दो
जागी हुई रात के सोये हुए पाहुनों
देर उतनी ही हुई है
जितनी दूरी है , मेरे अँगना से
तेरे क़दमों की

5 टिप्‍पणियां:

  1. जितनी दूरी है मेरे रूठे हुए अपनों
    पलकों की मुंडेरों पर , थम गये हो

    -भावपूर्ण रचना.

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    bahut khub

    http://kavyawani.blogspot.com/

    shekhar kumawat

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  3. जागी हुई रात के सोये हुए सपनों....
    क्या खूब कहा है....वाह....मुबारकबाद

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